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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । यथा-एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूँ और उसके साथ प्रीति करता भी हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूं किन्तु उसके साथ प्रीति नहीं करता हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि अमुक के साथ प्रीति न करूँ किन्तु उसके साथ प्रीति कर लेता हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि अमुक के साथ प्रीति न करूं और उसके साथ प्रीति करता भी नहीं है ।
पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । यथा-एक पुरुष स्वयं भोजन आदि से तृप्त होकर आनन्दित होता हैं किन्तु दूसरे को तृप्त नहीं करता । एक पुरुष दूसरे को भोजन आदि से तृप्त कर प्रसन्न होता हैं किन्तु स्वयं को तृप्त नहीं करता । एक पुरुष स्वयं भी भोजन आदि से तृप्त होता हैं और अन्य को भी भोजन आदि से तृप्त करना हैं । एक पुरुष स्वयं भी तृप्त नहीं होता और अन्य को भी तृप्त नहीं करता ।
पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूं और विश्वास उत्पन्न करता भी हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूं किन्तु विश्वास उत्पन्न नहीं करता । एक पुरुष ऐसा सोचता हैं कि मैं अमुक मैं विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा किन्तु विश्वास उत्पन्न करने में सफल हो जाता हैं । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक में विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा और विश्वास उत्पन्न कर भी नहीं सकता हैं ।
एक पुरुष स्वयं विश्वास करता है किन्तु दूसरे में विश्वास उत्पन्न नहीं कर पाता । एक पुरुष दूसरे में विश्वास उत्पन्न कर देता हैं, किंतु स्वयं विश्वास नहीं करता । एक पुरुष स्वयं भी विश्वास करता हैं और दूसरे में भी विश्वास उत्पन्न करता हैं । एक पुरुष स्वयं भी विश्वास नहीं करता और न दूसरे में विश्वास उत्पन्न करता हैं ।
[३३५] वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-पत्रयुक्त, पुष्पयुक्त, फलयुक्त और छायायुक्त इसी प्रकार पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । यथा-पत्तेवाले वृक्ष के समान, पुष्पवाले वृक्ष के समान, फल वाले वृक्ष के समान, छाया वाले वृक्ष के समान । .
[३३६] भारवहन करनेवाले के चार विश्राम स्थल है । यथा-एक भारवाहक मार्ग में चलता हुआ एक खंधे से दूसरे खंधे पर भार रखता हैं । एक भारवाहक कहीं पर भार रखकर मल मूत्रादि का त्याग करता हैं | एक भारवाहक नागकुमार या सुपर्णकुमार के मंदिर में रात्रि विश्राम लेता हैं । एक भारवाहक अपने घर पहुंच जाता हैं।
इसी प्रकार श्रमणोपासक के चार विश्राम हैं । यथा-जो श्रमणोपासक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत या प्रत्याख्यान-पौषधोपवास करते हैं । जो श्रमणोपासक सामायिक या देशावगासिक धारण करता हैं । जो श्रमणोपासक चौदस अष्टमी, अमावस्या या पूर्णिमा के दिन पौषध करता हैं । जो श्रमणोपासक भक्त-पान का प्रत्याख्यान करता हैं, और पादप के समान शयन करके मरण की कामना नहीं करता हैं ।
[३३७] पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । यथा-उदितोदित-यहाँ भी उदय (समृद्ध) और आगे भी उदय (परम सुख) है । उदितास्तमित-यहां उदय है किन्तु आगे उदय नहीं । अस्तमितोदित-यहां उदय नहीं है किन्तु आगे उदय हैं । अस्तमितास्तमित-यहां भी और आगे भी उदय नहीं हैं । भरत चक्रवर्ती उदितोदित हैं; ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती उदितास्तमित हैं । हरिकेशबल