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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं । यथा - कृष्णलेश्या, नीलेश्या और कापोतलेश्या । पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के तीन लेश्याए शुभ कही गई हैं । तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । इसी पकार मनुष्यों के भी तीन लेश्या समझना । असुरकुमारों के समान वानव्यन्तरों के भी तीन लेश्या समझनी चाहिए । वैमानिकों के तीन लेश्याएं कही गई हैं, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । [१४१] तीन कारणों से तारे अपने स्थान से चलित होते हैं, यथा- वैक्रिय करते हुए, विषय - सेवन करते हुए, एक स्थान से दूसरे स्थान पर संक्रमण करके जाते हुए ।
तीन कारणों से देव विद्युत् चमकाते हैं, यथा- वैक्रिय करते हुए, विषय-सेवन करते हुए तथारूप श्रमण-माहन को ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, और पौरुष पराक्रम बताते हुए । 'तीन कारणों से देव मेघ गर्जना करते हैं, यथा वैक्रिय करते हुए जिस प्रकार विद्युत् चमकाने के लिए कहा वैसा ही मेघ गर्जना के लिए भी समझना चाहिए ।
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[१४२] तीन कारणों से (तीन प्रसंगों पर) लोक में अन्धकार होता हैं, यथा- अर्हन्त भगवान् के निर्वाण प्राप्त होने पर अर्हन्त - प्ररूपित धर्म (तीर्थ) के विच्छिन्न होने पर, पूर्वगत श्रुत के विच्छिन्न होने पर ।
तीन कारणों से लोक में उद्योत होता हैं, यथा- अर्हन्त के जन्म धारण करते समय, अर्हन्त के प्रव्रज्या अंगीकार करते समय, अर्हन्त भगवान् के केवलज्ञान महोत्सव समय । तीन कारणों से देव-भवनों में भी अन्धकार होता हैं, यथा- अर्हन्त भगवान् के निर्वाण प्राप्त होने पर, अर्हन्त प्ररूपित धर्म को विच्छेद होने पर, पूर्वगत श्रुत के विच्छिन्न होने पर । तीन प्रसंगों पर देवलोक में विशेष उद्योत होता हैं, यथा- अर्हन्त भगवंतों के जन्म महोत्सव पर, अर्हन्तों के दीक्षा महोत्सव पर, अर्हन्तों के केवलज्ञान महोत्सव पर ।
तीन प्रसंगों पर देव इस पृथ्वी पर आते हैं, यथा- अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवल ज्ञान महोत्सव पर । इसी तरह देवताओं का समूह रूप मे एकत्रित होना और देवताओं का हर्षनाद भी समझना चाहिए ।
तीन प्रसंगो पर देवेन्द्र मनुष्य लोक में शीघ्र आते हैं, यथा- अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान महोत्सव पर । इसी प्रकार सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल देव, अग्रमहिषीदेवियों की पर्षद् के देव, सेनाधिपति देव, आत्मरक्षक देव मनुष्य - लोक में शीघ्र आते हैं ।
तीन प्रसंगों पर देव सिंहासन से उठते हैं, यथा - अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान- प्रसंग महोत्सव पर । इसी तरह तीन प्रसंगो पर उनके आसन चलायमान होते हैं, वे सिंह नाद करते हैं और वस्त्र-वृष्टि करते हैं ।
तीन प्रसंगो पर देवताओं के चैत्यवृक्ष चलायमान होते हैं, यथा- अर्हन्तों के जन्म महोत्सव पर । उनके दीक्षा महोत्सव पर, केवलज्ञान महोत्सव पर ।
तीन प्रसंगो पर लोकान्तिक देव मनुष्य-लोक में शीघ्र आते है, यथा- अर्हन्तो के जन्म महोत्सव पर, उनके दीक्षा महोत्सव पर, उनके केवलज्ञान महोत्सव पर ।
[१४३] हे आयुष्नम् श्रमणो ! तीन व्यक्तियों पर प्रत्युपकार कठिन है, यथा- माता पिता, स्वामी (पोषक) और धर्माचार्य । कोई पुरुष ( प्रतिदिन ) प्रातःकाल होते ही माता-पिता
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