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स्थान-३/१/१२७
इन्द्र तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-ज्ञान इन्द्र, दर्शन इन्द्र और चारित्र इन्द्र इन्द्र तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-देवेन्द्र, असुरेन्द्र और मनुष्येन्द्र
[१२८] विकुर्वणा तीन प्रकार की है, एक बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके की जानेवाली विकुर्वणा, एक बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना की जानेवाली विकुर्वणा, एक बाह्य पुद्गलोंको ग्रहण करके और ग्रहण किये बिना भी की जानेवाली विकुर्वणा ।
विकुर्वणा तीन प्रकार की हैं, एक आभ्यन्तर पुद्गलों को ग्रहण करके की जानेवाली विकुर्वणा, एक आभ्यन्तर पुद्गलों को ग्रहण किये बिना की जाने वाली विकुर्वणा, एक आभ्यन्तर पुद्गलों को ग्रहण करके और बिना ग्रहण किये भी की जाने वाली विकुर्वणा ।
विकुर्वणा तीन प्रकार की है-एक बाह्य और आभ्यन्तर पुद्गलो को ग्रहण करके की जानेवाली विकुर्वणा । एक बाह्य आभ्यन्तर पुद्गलो को ग्रहण किये बिना की जानेवाली विकुर्वणा । एक बाह्य तथा आभ्यन्तर पुद्गलो को ग्रहण करके और बिना ग्रहण किये भी की जानेवाली विकुर्वणा ।
[१२९] नारक तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-कतिसंचित-एकसमय में दो से लेकर संख्यात तक उत्पन्न होनेवाले, अकतिसंचित-एक समय में असंख्यात उत्पन्न होनेवाले, अवक्तव्यक संचित-एक समय में एक ही उत्पन्न होनेवाले ।
इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर शेष अकचिसंचित ही हैं । क्योंकि वे एक समय में असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । इसी तरह वैमानिक पर्यन्त तीन भेद जानना ।
[१३०] परिचारणा (देवों का विषय-सेवन) तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा- कोई देव अन्य देवों को या अन्य देवों की देवियों को वश में करके या आलिंगनादि करके विषय सेवन करता है, अपनी देवियों को आलिंगन कर विषय-सेवन करता है और अपने शरीर की विकुर्वणा कर अपने आप से ही विषय सेवन करता है ।
कोई देव अन्य देवों और अन्य देवों की देवियों को वश में करके तो विषयसेवन नहीं करता हैं परन्तु अपनी देवियां का आलिंगन कर विषय-सेवन करता है ।
__ कोई देव अन्य देवों और अन्य देवों की देवियों को वश में करके विषय-सेवन नहीं करता हैं और न अपनी देवियों का आलिंगनादि करके भी विषय-सेवन करता है
[१३१] मैथुन तीन प्रकार का कहा गया हैं । यथा देवता सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी तिर्यच योनि सम्बन्धी ।
तीन प्रकार के जीव मैथुन करते हैं, यथा-देव, मनुष्य और तिर्यंचयोनिक जीव । तीन वेद वाले जीव मैथुन सेवन करते हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक ।
[१३२] योग तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-मनोयोग, वचनगोय और काययोग । इस प्रकार नारक जीवों के तीन योग होते हैं, यों विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त तीन योग समझने चाहिए ।
तीन प्रकार के प्रयोग हैं, यथा-मनः प्रयोग, वाक् प्रयोग और काय प्रयोग । जैसे विकलेन्द्रिय को छोड़कर योग का कथन किया वैसा ही प्रयोग के विषय में जानना ।
करण तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-मनःकरण, वचन करण और काय करण इसी तरह विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त तीन करण जानने चाहिए ।