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स्थान-२/३/९८
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कहे गये हैं, यथा-घोष और महाघोष । यह भवनपति के इन्द्र है ।
सोलह व्यन्तरों के बत्तीस इन्द्र है यथा-पिशाचेन्द्र दो हैं, सुरुप और प्रतिरूप । यक्षेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-पूर्णभद्र और माणिभद्र । राक्षसेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-भीम और महाभीम । किन्नरेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-किन्नर और किंपुरुष । किंपुरुषेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-सत्पुरुष और महापुरुष । महोरगेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-अतिकाय और महाकाय । गन्धवेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-गीतरति और गीतयश । अणपन्निकेन्द्र दो कहे गये हैं, यथासन्निहित और समान्य । पणपनिकेन्द्र दो कहें गये हैं, यथा-धात और विहात । ऋषिवादीन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-ऋषि और ऋषिपालक । भूतवादीन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-ईश्वर और महेश्वर । क्रन्दितेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-सुवत्स और विशाल । महाक्रन्दितेन्द्र दो कहे गये हैं, हास्य और हास्यरति । कुभांडेन्द्र दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-श्वेत और महाश्वेत । पतंगेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-पतय और पतयपति ।
ज्योतिष्क देवों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा-चन्द्र और सूर्य ।
बारह देवलोकों के दस इन्द्र है । यथा-सौधर्म और ईशान कल्प में दो इन्द्र हैं, शक्र और ईशान । सनत्कुमार और माहेन्द्र में दो इन्द्र कहे गये हैं, सनत्कुमार और माहेन्द्र । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प में दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा-ब्रह्म और लान्तक । महाशुक्र और सहस्त्रार कल्प में दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा-महाशुक्र और सहस्त्रार | आनत, प्राणत, आरण
और अच्युच कल्प में दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा-प्राणत और अच्युत इस प्रकार सब मिलकर चौसठ इन्द्र होते हैं ।
महाशुक्र और सहस्त्रार कल्प में विमान दो वर्ण के हैं, यथा-पीले और श्वेत । ग्रैवेयक देवों की ऊंचाई दो हाथ की हैं ।
| स्थान-२-उद्देशक-४ [९९] समय अथवा आवलिका जीव और अजीव कहे जाते हैं । श्वासोच्छ्वास अथवा स्तोक जीव और अजीव कहे जाते हैं । इसी तरह-लव, मुहूर्त और अहोरात्र पक्ष और मास ऋतु और अयन संवत्सर और युग सौ वर्ष और हजार वर्ष लाख वर्ष और क्रोड़ वर्ष त्रुटितांग और त्रुटित, पूर्वांग अथवा पूर्व, अड़ड़ांग और अड़ड़, अववांग और अवव, हुहूतांग और हूहूत, उत्पलांग और उत्पल, पद्मग और पद्म, नलिनांग और नलिन, अक्षनिकुरांग और अक्षनिकुर, अयुतांग और अयुत, नियुतांग और नियुत, प्रयुतांग और प्रयुत, चूलिकांग और चूलिक, शीर्ष प्रहेलिकांग और शीर्ष प्रहेलिका, पल्योपम और सागरोपम, उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी ये सब जीव और अजीव कहे जाते हैं ।
ग्राम अथवा नगर, निगम, राजधानी, खेड़ा, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आकर, आश्रम, संवाह सन्निवेश, गौकुल, आराम, उद्यान वन, वनखंड, बावड़ी, पुष्करिणी, सरोवर, सरखरों की पंक्ति, कूप, तालाब, हृद, नदी, रत्न-प्रभादिक पृथ्वी, घनोदधि, वातस्कन्ध (घनवात तनुवात), अन्य पोलार (वातस्कन्ध के नीचे का आकाश जहाँ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव भरे हैं) वलय (पृथ्वी के घनोदधि, धनवात, तनुवातरूप वेष्टन) विग्रह (लोकनाड़ी) द्वीप, समुद्र, वेला, वेदिका, द्वार, तोरण, नैरयिक नरकवास, वैमानिक, वैमानिकों के.आवास, कल्पविमानावास,