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समवाय- प्र./२३५
धूमप्रभा पृथ्वी का बाल्य एक लाख अट्ठारह हजार योजन है । तमः प्रभा पृथ्वी का बाहल्य एक लाख सोलह हजार योजन है और महातमः प्रभा पृथ्वी का बाहल्य एक लाख आठ हजार योजन है ।
[२३६] रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं । शर्करा पृथ्वी में पच्चीस लाख नारावास हैं । वालुका पृथ्वी में पन्द्रह लाख नारकावास हैं । पंकप्रभा पृथ्वी में दश लाख नरकवास हैं । धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास है । तमः प्रभा पृथ्वी में पांच कम एक लाख नारकावास हैं । महातमः पृथ्वी में (केवल ) पांच अनुत्तर नारकावास हैं । इसी प्रकार ऊपर की गाथाओं के अनुसार दूसरी पृथ्वी में, तीसरी पृथ्वी में, चौथी पृथ्वी में, पांचवीं पृथ्वी में, छठी पृथ्वी में और सातवीं पृथ्वीं में नरक बिलों - नारकावासों की संख्या कहना चाहिए ।
सातवीं पृथ्वी में कितना क्षेत्र अवगाहन कर कितने नारकावास हैं ? गौतम ! एक लाख आठ हजार योजन बाहल्यवाली सातवी पृथ्वी में ऊपर से साढ़े बावन हजार योजन अवगाहन कर और नीचे भी साढ़े बावन हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती तीन हजार योजनों में सातवीं पृथ्वी के नारकियों के पांच अनुत्तर, बहुत विशाल महानरक कहे गये हैं । जैसेकाल, महाकाल, रोरुक, महारोरुक और पांचवां अप्रतिष्ठान नाम का नरक हैं । ये नरक वृत्त (गोल) और त्र्यस्त्र हैं, अर्थात् मध्यवर्ती अप्रतिष्ठान नरक गोल आकार वाला है और शेष चारों दिशावर्ती चारों नरक त्रिकोण आकार वाले हैं । नीचे तल भाग में वे नरक क्षुरप्र ( खुरपा) के आकार वाले हैं ।... यावत् ये नरक अशुभ हैं और इन नरकों में अशुभ वेदनाएं हैं ।
[२३८] भगवन् ! असुरकुमारों के आवास (भवन) कितने कहे गये हैं ? गौतम ! इस एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्यवाली रत्नप्रभा पृथ्वी में ऊपर से एक हजारयोजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में रत्नप्रभा पृथ्वी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गये हैं । वे भवन बाहर गोल हैं, भीतर चौकोण हैं और नीचे कमल की कर्णिका के आकार से स्थित हैं । उनके चारों ओर खाई और परिखा खुदी हुई हैं जो बहुत गहरी हैं । खाई और परिखा के मध्य में पाल बंधी हुई है । तथा वे भवन अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, कपाट, तोरण, प्रतिद्वार, देश रूप भाग वाले हैं, यंत्र, मूसल, भुसुंढी, शतघ्नी, इन शस्त्रों से संयुक्त हैं । शत्रुओं की सेनाओं से अजेय हैं । अड़तालीस कोठों से रचित, अड़तालीस वन-मालाओं से शोभित हैं ।
उनके भूमिभाग और भित्तियाँ उत्तम लेपों से लिपी और चिकनी हैं, गोशीर्षचन्दन और लालचन्दन के सरस सुगन्धित लेप से उन भवनों की भित्तियों पर पांचों अंगुलियों युक्त हस्ततल हैं । इसी प्रकार भवनों की सीढ़ियों पर भी गोशीर्षचन्दन और लालचन्दन के रस से पांचों अंगुलियों के हस्ततल अंकित हैं । वे भवन कालागुरु, प्रधान कुन्दरु और तुरुष्क (लोभान) युक्त धूप के जलते रहने से मधमधायमान, सुगन्धित और सुन्दरता से अभिराम ( मनोहर ) हैं । वहां सुगन्धित अगरबत्तियां जल रही हैं ।
वे भवन आकाश के समान स्वच्छ हैं, स्फटिक के समान कान्तियुक्त हैं, अत्यन्त चिकने हैं, घिसे हुए हैं, पालिश किये हुए हैं, नीरज हैं, निर्मल हैं, अन्धकार - रहित हैं विशुद्ध