SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बारह वस्तु हैं । सत्यप्रवादपूर्व की दो वस्तु हैं । आत्मप्रवाद पूर्व की सोलह वस्तु हैं । कर्मप्रवाद पूर्व की तीस वस्तु हैं । प्रख्याख्यान पूर्व की बीस वस्तु हैं । विद्यानुप्रवादपूर्व की पन्द्रह वस्तु हैं । क्रियाविशाल पूर्व की तीस वस्तु हैं । लोकबिन्दुसार पूर्व की पच्चीस वस्तु कही [२२९] प्रथम पूर्व में दश, दूसरे में चौदह, तीसरे में आठ, चौथे में अठारह, पाँचवें में बारह, छठे में दो, सातवें में सोलह, आठवें में तीस, नवें में बीस, दशवें विद्यानुप्रवाद में पन्द्रह । तथा [२३०] ग्यारहवें में बारह, बारहवें में तेरह, तेरहवें में तीस और चौदहवें में पच्चीस वस्तु नामक महाधिकार हैं। [२३१] आदि के चार पूर्वो मे क्रम से चार, बारह, आठ और दश चूलिकावस्तु नामक अधिकार हैं । शेष दश पूर्वो में चूलिका नामक अधिकार नहीं हैं । यह पूर्वगत है । [२३२] वह अनुयोग क्या है-उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है । जैसे-मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग । मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवन्तों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, तीर्थ-प्रवर्तन, संहनन, संस्थान, शरीर-उच्चता, आयु, शिष्य, गण, गणधर, आर्या, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, केवलि-जिन, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी सम्यक् मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले साधु, सिद्ध, पादपोपगत, जो जहाँ जितने भक्तों का छेदन कर उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए, तमोरजसमूह से विप्रमुक्त हुए, अनुत्तर सिद्धिपथ को प्राप्त हुए, इन महापुरुषों का, तथा इसी प्रकार के अन्य भाव मूलप्रथमानुयोग में कहे गये हैं, वर्णित किए गए हैं, प्रज्ञापित किये गए हैं, प्ररूपित किये गए हैं, निदर्शित किये गए हैं और उपदर्शित किये गए हैं । यह मूलप्रथमानुयोग ___ गंडिकानुयोग में क्या है । गंडिकानुयोग अनेक प्रकार का है । जैसे-कुलकरगंडिका, तीर्थंकरगंडिका, गणधरगंडिका, चक्रवर्तीगंडिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, भद्रबाहुगंडिका, तपःकर्मगंडिका, चित्रान्तरगंडिका, उत्सर्पिणीगंडिका, अवसर्पिणी गंडिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक गतियों में गमन, तथा विविध योनियों में परिवर्तनानुयोग, इत्यादि गंडिकाएँ इस गंडिकानुयोग में कही जाती हैं, प्रज्ञापित की जाती हैं, प्ररूपित की जाती हैं, निदर्शित की जाती हैं और उपदर्शित की जाती हैं । यह गंडिकानुयोग है । यह चूलिका क्या है ? आदि के चार पूर्वो में चूलिका नामक अधिकार है । शेष दश पूर्वो में चूलिकाएँ नहीं है । यह चूलिका है । दृष्टिवाद की परीत वाचनाएँ है, संख्यात अनुयोगद्वार है । संख्यात प्रतिपत्तियां हैं, संख्यात नियुक्तियां है, संख्यात श्लोक हैं, और संख्यात संग्रहणियां हैं ।। यह दृष्टिवाद अंगरूप से बारहवां अंग है । इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, चौदह पूर्व हैं, संख्यात वस्तु हैं, संख्यात चूलिका वस्तु हैं, संख्यात प्राभृत हैं, संख्यात प्राभृत-प्राभृत हैं, संख्यात प्राभृतिकाएं हैं, संख्यात प्राभृत-प्राभृतिकाएं हैं । पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy