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________________ समवाय-प्र./२२६ २४७ प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं, और उपदर्शित किये जाते हैं । इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है । इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तु-स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है । यह दशवें प्रश्नव्याकरण अंग का परिचय है । [२२७] विपाकसूत्र क्या है इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का फल-विपाक कहा गया है । यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है-दुःख-विपाक और सुख-विपाक । इनमें दुःख-विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख-विपाक में भी दश अध्ययन हैं ।। यह दुःख विपाक क्या है इसमें क्या वर्णन है ? दुःख-विपाक में दुष्कृतों के दुःखरूप फलों को भोगनेवालों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, (गौतम स्वामी का भिक्षा के लिए) नगर-गमन, (पाप के फल से). संसार-प्रबन्ध में पड़ कर दुःख परम्पराओं को भोगने का वर्णन किया जाता है । यह दुःख-विपाक है । __ सुख-विपाक क्या है इसमें क्या वर्णन है ? - सुख-विपाक में सुकृतों के सुखरूप फलों को भोगनेवालों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत-परिग्रह, तप-उपधान, दीक्षा-पर्याय, प्रतिमाएं, संलेखनाएं, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोक-गमन, सुकुल-प्रत्यागमन, पुनः वोधिलाभ, और उनकी अन्तक्रियाएं कही गई हैं । दुःख विपाक के प्राणातिपात, असत्य : वचन, स्तेय, पर-दार-मैथुन, ससंगता (परिग्रहसंचय) महातीव्र कषाय, इन्द्रिय-विषय-सेवन, प्रमाद, पाप-प्रयोग और अशुभ अध्यवसानों (परिणामों) से संचित पापकर्मों के उन पापरूप अनुभाग-फल-विपाकों का वर्णन किया गया है जिन्हें नरकगति, और तिर्यग्-योनि में बहुत प्रकार के सैकड़ों संकटों की परम्परा में पड़कर भोगना पड़ता है । __ वहाँ से निकल कर मनुष्य भव में आने पर भी जीवों को पाप-कर्मों के शेष रहने से अनेक पापरूप अशुभफल-विपाक भोगने पड़ते हैं, जैसे-वध (दण्ड आदि से ताड़न, वृषणविनाश (नपुंसकीकरण), नासा-कर्तन, कर्ण-कर्तन, ओष्ठ-छेदन, अंगुष्ठ-छेदन, हस्त-कर्तन, चरण-छेदन, नख-छेदन, जिह्वा-छेदन, अंजन-दाह (उष्ण लोहशलाका से आंखों को आंजनाफोड़ना), कटाग्निदाह (वांस से बनी चटाई से शरीर को सर्व ओर से लपेट कर जलाना), हाथी के पैरों के नीचे डालकर शरीर को कुचलवाना, फरसे आदि से शरीर को फाड़ना, रस्सियों से बाँधकर वृक्षों पर लटकाना, त्रिशूल-लता, लकुट (मूंठवाला डंडा) और लकड़ी से शरीर को भग्न करना, तपे हुए कड़कडाते रांगा, सीसा एवं तेल से शरीर का अभिसिंचन करना, कुम्भी (लोहभट्टी) में पकाना, शीतकाल में शरीर पर कंपकंपी पैदा करने वाला अतिशीतल जल डालना, काष्ठ आदि में पैर फंसाकर स्थिर (दृढ़) बाँधना, भाले आदि शस्त्रों से छेदन-भेदन करना, वर्द्धकर्तन (शरीर की खाल उधेड़ना) अति भय-कारक कर-प्रदीपन (वस्त्र लपेटकर और शरीर पर तेल डालकर दोनों हाथों में अग्नि लगाना) आदि अति दारुण, अनुपम दुःख भोगने पड़ते
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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