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समवाय- प्र./१९२
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सभी यमक पर्वत दश दश सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं । तथा वे दश दश सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं । वे मूल में दश दश सौ योजन आयाम - विष्कम्भ वाले हैं । इसी प्रकार चित्र-विचित्र कूट भी कहना चाहिए !
सभी वृत्त वैताढ्यपर्वत दश दश सौ योजन ऊंचे हैं । उनका उद्वेध दश-दश सौ गव्यूति है । वे मूल में दश दश सौ योजन विष्कम्भ वाले हैं । उनका आकार ऊपर-नीचे सर्वत्र पल्यक (ढोल) के समान गोल है ।
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वक्षार कूट को छोड़ कर सभी हरि और हरिस्सह कूट दश दश सौ योजन ऊंचे हैं और मूल में दश सौ योजन विष्कम्भ वाले हैं । इसी प्रकार नन्दन- कूट को छोड़ कर सभी बलकूट भी दश सौ योजन विस्तार वाले जानना चाहिए ।
अरिष्टनेमि अर्हत् दश सौ वर्ष (१००० ) की समग्र आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
पार्श्व अर्हत् के दश सौ अन्तेवासी कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह दश दश सौ (१०००) योजन लम्बे कहे गये हैं । [१९३] अनुत्तरौपपातिक देवों के विमान ग्यारह सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं । पार्श्व अर्हत् के संघ में ११०० वैक्रिय लब्धि से सम्पन्न साधु थे । [१९४] महापद्म और महापुंडरीक ग्रह दो-दो हजार योजन लम्बे हैं ।
[१९५] इस रत्नप्रभा पृथ्वी के वज्रकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से लोहिताक्ष कांड का निचला चरमान्त भाग तीन हजार योजन के अन्तरवाला है ।
[१९६] तिगिंछ और केशरी द्रह चार-चार हजार योजन लम्बे हैं ।
[१९७] धरणीतल पर मन्दर पर्वत के ठीक बीचों बीच रुचकनाभि से चारों ही दिशाओं में मन्दर पर्वत पाँच-पाँच हजार योजन के अन्तरवाला है ।
[१९८] सहस्त्रार कल्प में छह हजार विमानावास कहे गये हैं ।
[१९९] रत्नप्रभा पृथ्वी के रत्नकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से पुलककांड का निचला चरमान्त भाग सात हजार योजन के अन्तरवाला है ।
[२००] हरिवर्ष और रम्यकवर्ष कुछ अधिक आठ हजार योजन विस्तारवाले है । [२०१] पूर्व और पश्चिम में समुद्र को स्पर्श करने वाली दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की जीवा नौ हजार योजन लम्बी है ।
[ अजित अर्हत् के संघ में कुछ अधिक नौ हजार अवधिज्ञानी थे |
[२०२] मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तारवाला कहा गया है । [२०३] जम्बूद्वीप एक लाख योजन आयाम - विष्कम्भ वाला कहा गया है । [२०४] लवण समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन चौड़ा कहा गया है । [२०५] पार्श्व अर्हत् के संघ में तीन लाख सत्ताईस हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट
सम्पदा थी ।
[२०६] धातकीखण्ड नामक द्वीप चक्रवालविष्कम्भ की अपेक्षा चार लाख योजन चौड़ा कहा गया है |