________________
२३२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
(समवाय-८९) [१६८] कौशलिक कृषभ अर्हत् इसी अवसर्पिणी के तीसरे सुषमदुषमा आरे के पश्चिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ वर्ष, ८ मास१ १५ दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
श्रमण भगवान् महावीर इसी अवसर्पिणी के चौथे दुःषमसुषमा काल के अन्तिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ वर्ष ८ मास १५ दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
चातुरन्त चक्रवर्ती हरिषेणराजा ८९०० वर्ष महासाम्राज्य पद पर आसीन रहे । शान्तिनाथ अर्हत् के संघ में ८९०० आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिकासम्पदाथी ।
(समवाय-९०) [१६९] शीतल अर्हत् नव्वै धनुष ऊंचे थे । अजित अर्हत् के नव्वै गण और नव्वै गणधर थे । इसी प्रकार शान्ति जिन के नव्वै गण और नव्वै गणधर थे ।
स्वयम्भू वासुदेव ने नव्वै वर्ष में पृथ्वी को विजय किया था ।
सभी वृत्त वैताढ्य पर्वतों के ऊपरी शिखर से सौगन्धिककाण्ड का नीचे का चरमान्त भाग ९००० योजन अन्तरवाला है । समवाय-९० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-९१) [१७०] पर-वैयावृत्त्यकर्म प्रतिमाएं इक्यानवै कही गई हैं । कालोद समुद्र परिक्षेप की अपेक्षा कुछ अधिक इक्यानवे लाख योजन है । कुन्थु अर्हत् के संघ में ९१०० नियत क्षेत्र को विषय करने वाले अवधिज्ञानी थे ।
आयु और गोत्र कर्म को छोड़ कर शेष छह कर्मप्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ इक्यानवै कही गई हैं ।
(समवाय-९२) [१७१] प्रतिमाएं बानवै कही गई हैं ।
स्थविर इन्द्रभूति बानवै वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, [कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित] हुए ।
__ मन्दर पर्वत के बहुमध्य देश भाग से गोस्तूप आवासपर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग बानवै हजार योजन के अन्तरवाला है । इसी प्रकार चारों ही आवासपर्वतों का अन्तर जानना चाहिए ।
(समवाय-९३) [१७२] चन्द्रप्रभ अर्हत् के तेरानवे गण और तेरानवे गणधर थे । शान्ति अर्हत् के संघ में ९३०० चतुर्दशपूर्वी थे ।