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समवाय-८०/१५९
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(समवाय-८०) [१५९] श्रेयांस अर्हन् अस्सी धनुष ऊंचे थे । त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे । अचल बलदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे । त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी लाख वर्ष महाराज पद पर आसीन रहे ।
रत्नप्रभा पृथ्वी का तीसरा अब्बहुल कांड अस्सी हजार योजन मोटा कहा गया है । देवेन्द्र देवराज ईशान के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गये हैं ।
जम्बूद्वीप के भीतर एक सौ अस्सी योजन भीतर प्रवेश कर सूर्य उत्तर दिशा को प्राप्त हो प्रथम बार (प्रथम मंडल में) उदित होता है । समवाय-८० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-८१) [१६०] नवनवमिका नामक भिक्षुप्रतिमा इक्यासी रात-दिनों में चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है ।
कुन्थु अर्हत् के संघ में इक्यासी सौ मनःपर्यय ज्ञानी थे । व्याख्या-प्रज्ञप्ति में इक्यासी महायुग्मशत कहे गये हैं ।
(समवाय-८२) [१६१] इस जम्बूद्वीप में सूर्य एक सौ व्यासीवें मंडल को दो बार संक्रमण कर संचार करता है । जैसे—एक बार निकलते समय और दूसरी बार प्रवेश करते समय ।
श्रमण भगवान् महावीर व्यासी रात-दिन बीतने के पश्चात् देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में संहृत किये गये ।
महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपरी चरमान्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग ब्यासी सौ योजन के अन्तरवाला कहा गया है । इसी प्रकार रुक्मी का भी अन्तर जानना चाहिए ।
(समवाय-८३) [१६२] श्रमण भगवान् महावीर व्यासी रात-दिनों के बीत जानेपर तियासीवें रात-दिन के वर्तमान होने पर देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए ।
शीतल अर्हत् के संघ में तियासी गण और तियासी गणधर थे । स्थविर मंडितपुत्र तियासी वर्ष की सर्व आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए ।
कौशलिक कृषभ अर्हत् तियासी लाख पूर्व वर्ष अगावास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए ।
चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रह कर सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी केवली जिन हुए ।