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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
सम्मूर्च्छिम उरपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तिरेपन हजार वर्ष कही गई है ।
समवाय-५४
[१३२ ] भरत और एरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । जैसे— चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव ।
अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात-दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पाल कर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी जिन हुए ।
श्रमण भगवान् महावीर ने एक दिन में एक आसन से बैठे हुए चौपन प्रश्नों के उत्तररूप व्याख्यान दिये थे ।
अनन्त अर्हन् के चौपन गण और चौपन गणधर थे ।
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समवाय- ५५
[१३३] मल्ली अर्हन् पचपन हजार वर्ष की परमायु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से पूर्वी विजयद्वार के पश्चिमी चरमान्त भाग का अन्तर पचपन हजार योजन का कहा गया है । इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित द्वारों का अन्तर जानना चाहिए ।
श्रमण भगवान् महावीर अन्तिम रात्रि में पुण्य फल विपाकवाले पचपन और पाप - फल विपाकवाले पचपन अध्ययनों का प्रतिपादन करके सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
पहिली और दूसरी इन दो पृथ्वीयों में पचपन लाख नारकावास कहे गये हैं । दर्शनावरणीय, नाम और आयु इन तीन कर्मप्रकृतियों की मिलाकर पचपन उत्तर प्रकृतियां कही गई हैं ।
समवाय - ५५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय- ५६
[ १३४] जंबूद्वीप में दो चन्द्रमाओं के परिवारवाले छप्पन नक्षत्र चन्द्र के साथ योग करते थे, करते है और करेंगे ।
विमल अर्हत् के छप्पन गण और छप्पन गणधर थे ।
समवाय- ५७
[१३५] आचारचूलिका को छोड़ कर तीन गणिपिटकों के सत्तावन अध्ययन हैं । जैसे आचाराङ्ग के अन्तिम निशीथ अध्ययन को छोड़ कर प्रथमश्रुतस्कन्ध के नौ, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आचारचूलिका को छोड़कर पन्द्रह, दूसरे सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह, द्वितीय श्रुतस्कन्ध सात और स्थानाङ्ग के दश, इस प्रकार सर्व सत्तावन अध्ययन है ।