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________________ २१० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद है, वह महामोहनीयकर्म का बन्ध करता है । [८६] जो अज्ञानी पुरुष अनन्तज्ञानी अनन्तदर्शी जिनेन्द्रों का श्रवर्णवाद करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [८७] जो दुष्ट पुरुष न्याय-युक्त मोक्षमार्ग का अपकार करता है और बहुत जनों को उससे च्युत करता है, तथा मोक्षमार्ग की निन्दा करता हुआ अपने आपको उससे भावित करता है, अर्थात् उन दुष्ट विचारों से लिप्त करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [८८] जो अज्ञानी पुरुष, जिन-जिन आचार्यों और उपाध्यायों से श्रुत और विनय धर्म को प्राप्त करता है, उन्हीं की यदि निन्दा करता है, अर्थात् ये कुछ नहीं जानते, ये स्वयं चारित्र से भ्रष्ट हैं, इत्यादि रूप से उनकी बदनामी करता है, तो वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [८९] जो आचार्य, उपाध्याय एवं अपने उपकारक जनों को सम्यक् प्रकार से सन्तृप्त नहीं करता है अर्थात् सम्यक् प्रकार से उनकी सेवा नहीं करता है, पूजा और सन्मान नहीं करता है, प्रत्युत अभिमान करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९०] अबहुश्रुत (अल्प श्रुत का धारक) जो पुरुष अपने को बड़ा शास्त्रज्ञानी कहता है, स्वाध्यायवादी और शास्त्र-पाठक बतलाता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९१] जो अतपस्वी होकर के भी अपने को महातपस्वी कहता है, वह सब से महा चोर (भाव-चोर होने के कारण) महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९२] उपकार (सेवा-शुश्रूषा) के लिए किसी रोगी, आचार्य या साधु के आने पर स्वयं समर्थ होते हुए भी जो 'यह मेरा कुछ भी कार्य नहीं करता है', इस अभिप्राय से उसकी सेवा आदि कर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है [९३] इस मायाचार में पटु, वह शठ कलुषितचित्त होकर (भवान्तर में) अपनी अबोधि का कारण बनता हआ महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९४] जो पुनः पुनः स्त्री-कथा, भोजन-कथा आदि विकथाएं करके मंत्र-यंत्रादि का प्रयोग करता है या कलह करता है, और संसार से पार उतारनेवाले सम्यग्दर्शनादि सभी तीर्थों के भेदन करने के लिए प्रवृत्ति करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। [९५] जो अपनी प्रशंसा के लिए मित्रों के निमित्त अधार्मिक योगों का अर्थात् वशीकरणादि प्रयोगों का वार-वार उपयोग करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९६] जो मनुष्य-सम्बन्धी अथवा पारलौकिक देवभव सम्बन्धी भोगों में तृप्त नहीं होता हुआ वार-वार उनकी अभिलाषा करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९७] जो अज्ञानी देवों की वृद्धि (विमानादि सम्पत्ति), द्युति (शरीर और आभूषणों की कान्ति), यश और वर्ण (शोभा) का, तथा उनके बल-वीर्य का अवर्णवाद करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९८] जो देवों, यक्षों और गृह्यकों (व्यन्तरों) को नहीं देखता हुआ भी 'मैं उनकों देखता हूं' ऐसा कहता है, वह जिनदेव के समान अपनी पूजा का अभिलाषी अज्ञानी पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । [९९] स्थविर मंडितपुत्र तीस वर्ष श्रमण-पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध हुए,
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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