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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद यावत्-असंख्य समय की स्थिति वाले पुद्गलोंकी वर्गणा एक है ।
एक गुण काले पुद्गला की वर्गणा एक है - यावत्-असंख्य गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है । अनन्त गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है । इस प्रकार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का कथन करना चाहिए-यावत्- अनन्त गुण रूक्ष पुद्गलों की वर्गणा एक है ।
जघन्य प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । न जघन्य न उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार जघन्यावगाढ, उत्कृष्टावगाढ
और अजघन्योत्कृष्टावगाढ । जघन्यस्थिति वाले, उत्कृष्टस्थितिवाले, अजघन्योत्कृष्ट स्थितिवाले । जघन्यगुण काले, उत्कृष्टगुण काले, अजघन्योत्कृष्टगुण काले जानें । इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है - यावत्- अजघन्योकृष्ट गुण रूक्ष पुद्गलों की वर्गणा एक है ।
[५२] सब द्वीप समुद्रों के मध्य में रहा हुआ-यावत्- जम्बूद्वीप एक है ।
[५३] इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थकरों में से अन्तिम तीर्थकर श्रमण भगवान् महावीर अकेले सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, निर्वाण प्राप्त, एवं सब दुखों से रहित हुए ।
[५४] अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई एक हाथ की है ।
[५५] आर्द्रा नक्षत्र का एक तारा कहा गया है । चित्रा नक्षत्र का एक तारा कहा गया है । स्वाति नक्षत्र का एक तारा कहा गया है ।
[५६] एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल अनन्त कहे गए हैं । इसी प्रकार एक समय की स्थिति वाले-एक गुण काले पुद्गल - यावत्-एक गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गए है । स्थान-१-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(स्थान-२.)
उद्देशक-१ [५७] लोक में जो कुछ हैं वह सब दो प्रकार का है, यथाजीव और अजीव ।
जीव का द्वैविध्य इस प्रकार है : त्रस और स्थावर, सयोनिक और अयोनिक, सायुष्य और निरायुष्य, सेन्द्रिय और अनेन्द्रिय, सवेदक और अवेदक, सरूपी और अरूपी, सपुद्गल और अपुद्गल, संसार-समापन्नक और असंसार-समापनक शाश्वत और अशाश्वत ।।
[५८] अजीव का द्वैविध्य इस प्रकार है : आकांशास्तिकाय और नो आकाशास्तिकाय धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ।
[५९] (अन्य तत्वों का स्वपक्ष और प्रतिपक्ष इस प्रकार है) बंध और मोक्ष, पुण्य और पाप, आस्त्रव और संवर, वेदना और निर्जरा ।
[६०] क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा जीव क्रिया और अजीव क्रिया । जीव क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया । अजीव क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- ऐपिथिकी और साम्परायिकी ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-कायिकी और आधिकरणिकी । कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-अनुपरतकाय क्रिया और दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया । आधिकरणिकी