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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है । अधस्तन सातवीं पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस सागरोपम की है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है ।
__ सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम है । उपरिममध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम है । जो देव उपरिम-अस्ततन ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम है । वे देव उनतीस अर्धमासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के उनतीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उनतीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-२९ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-३०) [६४] मोहनीय कर्म बंधने के कारणभूत तीस स्थान कहे गये हैं । जैसे
[६५] जो कोई व्यक्ति स्त्री-पशु आदि त्रस-प्राणियों को जल के भीतर प्रविष्ट कर और पैरों को नीचे दबा कर जलके द्वारा उन्हें मारता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है |
[६६] जो व्यक्ति किसी मनुष्य आदि के शिर को गीले चर्म से वेष्टित करता है, तथा निरन्तर तीव्र अशुभ पापमय कार्यों को करता रहता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है ।
[६७] जो कोई किसी प्राणी के सुख को हाथ से बन्द कर उसका गला दबाकर धुरधुराते हुए उसे मारता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[६८] जो कोई अग्नि को जला कर, या अग्नि का महान् आरम्भ कर किसी मनुष्यपशु आदि को उसमें जलाता है या अत्यन्त धूमयुक्त अग्निस्थान में प्रविष्ट कर धुंए से उसका दम घोंटता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[६९] जो किसी प्राणी के उत्तमाङ्ग-शिर पर मुद्गर आदि से प्रहार करता है अथवा अति संक्लेश युक्त चित्त से उसके माथे को फरसा आदि से काटकर मार डालता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[७०] जो कपट करके किसी मनुष्य का घात करता है और आनन्द से हंसता है, किसी मंत्रित फल को खिला कर अथवा डंडे से मारता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है ।
[७१] जो गूढ (गुप्त) पापाचरण करने वाला मायाचार से अपनी माया को छिपाता है, असत्य बोलता है और सूत्रार्थ का अपलाप करता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है ।
[७२] जो अपने किये कृषिघात आदि घोर दुष्कर्म को दूसरे पर लादता है, अथवा अन्य व्यक्ति के द्वारा किये गये दुष्कर्म को किसी दूसरे पर आरोपित करता है कि तुमने यह दुष्कर्म किया है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
[७३] 'यह बात असत्य है' ऐसा जानता हुआ भी जो सभा में सत्यामृषा (जिसमें सत्यांश कम है और असत्यांश अधिक है ऐसी) भाषा बोलता है और लोगों से सदा कलह करता रहता है, वह महा मोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।