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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मनोगुप्ति, ३. वचनगुप्ति, ४. आलोकितपान-भोजन, ५. आदानभांड-मात्रनिक्षेपणासमिति । [मृषावाद-विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं-] १. अनुवीचिभाषण, २. क्रोध-विवेक, ३. लोभ-विवेक, ४. भयविवेक, ५. हास्य-विवेक । [अदत्तादान-विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं-] १. अवग्रह-अनुज्ञापनता, २. अवग्रहसीम-ज्ञापनता, ३. स्वयमेव अवग्रहअनुग्रहणता, ४. साधर्मिक अवग्रह-अनुज्ञापनता, ५. साधरण भक्तपान-अनुज्ञाप्य परि जनता, (मैथुन-विरमण महाव्रत की पाँच भावानाएं-] १. स्त्री-पशु-नपुंसक-संसक्त शयन-आसन वर्जनता, २. स्त्रीकथाविवर्जनता, ३. स्त्री इन्द्रिय-आलोकनवर्जनता, ४. पूर्वरत-पूर्वक्रीडाअननुस्मरणता, ५. प्रणीत-आहारविवर्जनता । [परिग्रह-विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं] १. श्रोत्रेन्द्रिय-रागोपरति, २. चक्षुरिन्द्रिय-रागोपरति, ३. ध्राणेन्द्रिय-रागोपरति, ४. जिह्वन्द्रिय-रागोपरति, और ५. स्पर्शनेन्द्रिय-रागोपरति ।
मल्ली अर्हन् पच्चीस धनुष ऊंचे थे ।
सभी दीर्ध वैताढ्य पर्वत पच्चीस धनुष ऊंचे कहे गये हैं । तथा वे पच्चीस कोश भूमि में गहरे कहे गये हैं।
दूसरी पृथ्वी में पच्चीस लाख नारकावास कहे गये हैं। . चूलिका-सहित भगवद्-आचाराङ्ग सूत्र के पच्चीस अध्ययन कहे गये हैं । जैसे
[५६] १ शस्त्रपरिज्ञा, २ लोकविजय, ३ शीतोष्णीय, ४ सम्यक्त्व, ५ आवन्ती, ६ धूत, ७ विमोह, ८ उपधानश्रुत, ९ महापरिज्ञा ।
[५७] १० पिण्डैषणा, ११ शय्या, १२ ईर्या, १३ भाषाध्ययन, १४ वस्त्रैषणा, १५ पात्रैषणा, १६ अवग्रहप्रतिमा, १७ स्थान, १८ निषीधिका, ११ उच्चारप्रस्त्रवण, २० शब्द, २१ रूप, २२ परक्रिया, २३ अन्योन्य क्रिया २४ भावना अध्ययन और २५ विमुक्ति अध्ययन ।
[५८] अन्तिम विमुक्ति अध्ययन निशीथ अध्ययन सहित पच्चीसवाँ है ।
[५९] संक्लिष्ट परिणामवाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय जीव नामकर्म की पच्चीस उत्तर प्रकृतियों को बांधते हैं । जैसे- तिर्यग्गतिनाम, विकलेन्द्रिय जातिनाम,
औदारिकशरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, हुंडकसंस्थान नाम, औदारिकशरीराङ्गोपाङ्गनाम, सेवार्तसंहनननाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, तिर्यंचानुपूर्वीनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, त्रसनाम, बादरनाम, अपर्याप्तकनाम, प्रत्येकशरीरनाम, अस्थिरनाम, अशुभनाम, दुर्भगनाम, अनादेयनाम, अयशस्कीर्तिनाम और निर्माणनाम ।।
गंगा-सिन्धु महानदियाँ पच्चीस कोश पृथुल (मोटी) घड़े के मुख-समान मुख में प्रवेश कर और मकर के मुख की जिह्वा के समान पनाले से निकल कर मुक्तावली हार के आकार से प्रपातद्रह में गिरती हैं । इसी प्रकार रक्ता-रक्तवती महानदियाँ भी पच्चीस कोश पृथुल घड़े के मुख समान मुख में प्रवेश कर और मकर के मुख की जिह्वा के समान पनाले से निकलकर मुक्तावली-हार के आकार से प्रपातद्रह में गिरती हैं ।
लोकविन्दुसार नामक चौदहवें पूर्व के वस्तुनामक पच्चीस अर्थाधिकार कहे गये हैं ।
इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति पच्चीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन सातवीं महातमः प्रभापृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पच्चीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति पच्चीस पल्योपम कही गई है ।