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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
सर्व जघन्य रात्रि (सब से छोटी रात) बारह मूहुर्त की होती है । इसी प्रकार सबसे छोटा दिन भी बारह मुहूर्त का जानना चाहिए ।
सर्वार्थसिद्ध महाविमान की उपरिम स्तूपिका (चूलिका) से बारह योजन ऊपर ईषत् प्राग्भार नामक पृथ्वी कही गई है । ईषत् प्राग्भार पृथ्वी के बारह नाम कहे गये हैं । जैसेईषत् पृथ्वी, ईषत् प्राग्भार पृथ्वी, तनु पृथ्वी, तनुतरी पृथ्वी, सिद्धि पृथ्वी, सिद्धालय, मुक्ति, मुक्तालय, ब्रह्म, ब्रह्मावतंसक, लोकप्रतिपूरणा और लोकाग्रचूलिका ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति बारह पल्योपम कही गई है । पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति बारह सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बारह पल्योपम कही गई है ।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बारह पल्योपम कही गई है । लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति बारह सागरोपम है । वहां जो देव माहेन्द्र, माहेन्द्रध्वज, कम्बु, कम्बुग्रीव, पुंख, सुपुंख, महापुंख, पुंड, सुपुंड, महापुंड नरेन्द्र, नरेन्द्रकान्त और नरेन्द्रोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उनकी उत्कृष्ट स्थिति बारह सागरोपम कही गई है । वे देव छह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के बारह हजार वर्ष के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-१२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-१३) [२६] तेरह क्रियास्थान कहे गये हैं । जैसे–अर्थदंड, अनर्थदंड, हिंसादंड, अकस्माद् दंड, दृष्टिविपर्यास दंड, मृषावाद प्रत्यय दंड, अदत्तादान प्रत्यय दंड, आध्यात्मिक दंड, मानप्रत्यय दंड, मित्रद्वेषप्रत्यय दंड, मायाप्रत्यय दंड, लोभप्रत्यय दंड और ईर्यापथिक दंड |
सौधर्म-ईशान कल्पों में तेरह विमान-प्रस्तट हैं । सौधर्मावतंसक विमान साढ़े बारह लाख योजन आयाम-विष्कम्भ वाला है । इसी प्रकार ईशानावतंसक विमान भी जानना । जलचर पंचेन्द्रियतिर्यचयोनिक जीवों की जाति कुलकोटियां साढे बारह लाख हैं।
प्राणायु नामक बारहवें पूर्व के तेरह वस्तु नामक अर्थाधिकार कहे गये हैं ।
गर्भज पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक जीवों में तेरह प्रकार के योग या प्रयोग होते हैं । जैसेसत्य मनःप्रयोग, मृषामनःप्रयोग, सत्यमृषामनःप्रयोग, असत्यामृषामनःप्रयोग, सत्यवचनप्रयोग मृषावचनप्रयोग, सत्यमृषावचनप्रयोग, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग,
औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग, और कार्मणशरीरकायप्रयोग ।
सूर्यमंडल एक योजन के इकसठ भागों में से तेरह भाग [ से न्यून अर्थात् ] योजन के विस्तार वाला कहा गया है ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति तेरह पल्योपम कही गई है । पांचवी