________________
१८
[२९] तर्क-विमर्श एक है । [३०] संज्ञा एक है | [३१] मनन-शक्ति एक है । [३२] विज्ञान एक है । [३३] वेदना एक है । [३४] छेदन एक है |
[३५] भेदन एक है ।
[३६] चरम शरीरों का मरण एक ही होता है ।
[३७] पूर्ण शुद्ध तत्वज्ञ पात्र अथवा गुणप्रकर्ष प्राप्त 'केवली एक है । [३८] स्वकृत कर्मफल से जीवों का दुख एकसा है । सर्व भूत-जीव एक है । [३९] जिसके सेवन से आत्मा को क्लेश प्राप्त होता है वह अधर्म प्रतिज्ञा एक है । [४०] जिस से आत्मा विशिष्ट ज्ञानादि पर्याय युक्त होता हे वह धर्म प्रतिज्ञा एक है । [४१] देव, असुर और मनुष्यो का एक समय में मनोयोग एक ही होता है । वचन योग और काय योग भी एक ही होता है ।
[४२] देव, असुर और मनुष्यों के एक समय में एक ही उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पौरुष पराक्रम होता है ।
दर्शन एक है । चारित्र एक है ।
[४३] ज्ञान एक है । [४४] समय एक है [ ४५ ] प्रदेश एक है
।
। परमाणु एक है ।
। स्पर्श एक है | शुभ
दीर्घ एक है । ह्रस्व
[४६] सिद्धि एक है, सिद्ध एक है । परिनिर्वाण एक है, परिनिर्वृत्त एक है । [४७] शब्द एक है । रूप एक है । गंध एक है । रस एक है शब्द एक है । अशुभ शब्द एक है सुरूप एक है । कुरूप एक है । एक है । वर्तुलाकार 'लड्डू के समान गोल' एक है त्रिकोण एक है पृथुल - विस्तीर्ण एक है । परिमंडल - चूड़ो काला एक है । नीला एक है सुगन्ध एक है | दुर्गन्ध एक
।
चतुष्कोण एक है ।
के समान गोल
एक है ।
।
अम्ल एक है । मधुर एक है । कर्कश - यावत्- रुक्ष एक है ।
लाल एक है
। तिक्त एक है
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
।
।
पीला एक है
कटुक एक है
।
।
श्वेत एक है ।
कषाय एक है ।
[४८] प्राणातिपात ( हिंसा ) - यावत् - परिग्रह एक है । क्रोध यावत्-लोभ एक है । राग एक है- यावत्-परपरिवाद एक है । रति- अरति एक है । मायामृषा - कपटयुक्त झूठ एक है ! मिथ्यादर्शन शल्य एक है ।
[४९] प्राणातिपात विरमण एक है - यावत् परिग्रह - विरमण एक है । क्रोध- त्याग एक है - यावत्-मिथ्यादर्शन- शल्य-त्याग एक है ।
[५० ] अवसर्पिणी एक । सुषमसुषमा एक है - यावत् दुषमदुषमा एक है । उत्सर्पिणी एक है । दुषमदुषमा एक है- यावत्- सुषमसुषमा एक है
।
[५१] नारकीय के जीवों की वर्गणा एक है । असुरकुमारों की वर्गणा एक है, यावत्-वमानिक देवों की वर्गणा एक है । भव्य जीवों की वर्गणा एक है । अभव्य जीवों की