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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
वाली नदिया पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं । पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियां कालोद समुद्र में मिलती हैं ।
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पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में पूर्ववत् सात वर्ष क्षेत्र हैं । विशेष - पूर्व की ओर बहनेवाली नदियां पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं । पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां कालोदसमुद्र में मिलती हैं शेष तीन सूत्र पूर्ववत् । इसी प्रकार पश्चिमार्ध के भी चार सूत्र हैं । विशेष— पूर्व की ओर बहनेवाली नदियां कालोदसमुद्र में मिलती हैं और पश्चिम की ओर बहनेवाली पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं । वर्ष, वर्षधर और नदियां सर्वत्र कहनी चाहिये ।
[६४६] जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी में सात कुलकर थे, यथा[६४७] मित्रदास, सुदाम, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, विमलघोष, सुघोष, महाघोष । [६४८] जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी में सात कुलकर थे । [६४९] विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान्, अभिचन्द्र, प्रसेनजित्, मरुदेव, और नाभि । [६५०] इन सात कुलकरों की सात भार्यायें थी, यथा
[६५१] चंन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुकान्ता, श्रीकान्ता, मरुदेवी । [६५२] जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में सात कुलकर होंगे । यथा[६५३] मित्रवाहन, सुभीम, सुप्रभ, सयंप्रभ, दत्त, सूक्ष्म, सुबन्धु । [६५४] विमलवाहन कुलकर के काल में सात प्रकार के कल्पवृक्ष उपभोग में आते थे । यथा
[६५५ ] मद्यांगा, भृंगा, चित्रांगा, चित्ररसा, मण्यंगा, अनग्ना, कल्पवृक्ष ।
[६५६] दण्ड नीति सात प्रकार की है- यथा - हक्कार हे या हा कहना । मक्कार-मा अर्थात् म कर कहना । धिक्कार - फटकारना । परिभाषण - अपराधी को उपालम्भ देना । मंडल बंध - क्षेत्र मर्यादा से बाहर न जाने की आज्ञा देना । चारक- कैद करना । छविच्छेद-हाथ पैर आदि का छेदन करना ।
[६५७] प्रत्येक चक्रवर्ती के सात एकेन्द्रिय रत्न कहे गये हैं । यथा - चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न और काकिणीरत्न ।
प्रत्येक चक्रवर्ती के सात पंचेन्द्रियरत्न हैं, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकीरत्न, पुरोहितरत्न, स्त्रीरत्न, अश्व रत्न, और हस्तीरत्न ।
[६५८ ] दुषमकाल के सात लक्षण हैं, यथा- अकाल में वर्षा होना, वर्षाकाल में वर्षा न होना, असाधु जनों की पूजा होना, साधु जनों की पूजा न होना, गुरु के प्रति लोगों का मिथ्याभाव होना, मानसिक दुःख, वाणी का दुःख ।
सुषम काल के सात लक्षण हैं, यथा- अकाल में वर्षा नहीं होती हैं, वर्षाकाल में वर्षा होती है, असाधु की पूजा नहीं होती है, साधु की पूजा होती है, गुरु के प्रति लोगों का सम्यक् भाव होता है, मानसिक सुख, वाणी का सुख ।
[६५९] संसारी जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा - नैरयिक, तिर्यंच, तिर्यंचनी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी ।
[ ६६०] आयु का भेदन सात प्रकार से होता है, यथा
[६६१] अध्यवसाय (राग-द्वेष और भय ) से, निमित्त (दंड, शस्त्र आदि) से, आहार