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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वासुपूज्य अर्हन्त के साथ छ: सौ पुरष प्रव्रजित हुये । चन्द्रप्रभ अर्हन्त छः मास पर्यन्त छद्मस्थ रहे ।
[५७२] तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाला छह प्रकार के संयम का पालन करता है । यथा- गंध ग्रहण का सुख नष्ट नहीं होता । गंध का दुःख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन का सुख नष्ट नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त नहीं होता । स्पर्श जन्य सुख नष्ट नहीं होता । स्पर्शानुभव न होने का दुःख प्राप्त नहीं होता ।
तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करने से छह प्रकार का असंयम होता है । यथा- गंध ग्रहण जन्य सुख प्राप्त नहीं होता । गंध ग्रहण न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है । रसास्वादन जन्य सुख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है । स्पर्शजन्य सुख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है । स्पर्शजन्य सुख प्राप्त नहीं होता । स्पर्शानुभव न कर सकने का सुख प्राप्त होता है |
[५७३] जम्बूद्वीप में छह अकर्मभूमियां हैं, यथा- हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक् वर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु ।
जम्बूद्वीप में छह वर्ष (क्षेत्र) हैं, यथा- भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक वर्ष ।
- जम्बूद्वीप में छः वर्षधर पर्वत हैं, यथा- चुल्ल (लघु) हिमवंत, महा हिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मि, शिखरी ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में छः कूट (शिखर) हैं । यथा- चुल्ल हैमवंत-कूट, वैश्रमण कूट, महा हैमवत कूट, वैडूर्य कूट, निषध कूट, रुचक कूट ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत से उत्तर दिशा में छह कूट हैं । यथा- नीलवान कूट, उपदर्शन कूट, रुक्मिकूट, मणिकंचन कूट, शिखरी कूट, तिगिच्छ कूट ।
जम्बूद्वीप में छः महाद्रह हैं, यथा- पद्मद्रह, महा पद्मद्रह, तिगिच्छद्रह, केसरीद्रह, महा पौंडरीकद्रह, पौडरिकद्रह । उन महाद्रहों में छह पल्योपम की स्थिति वाली छ: महर्धिक देवियां रहती हैं । यथा- १. श्री, २. ह्री, ३. धृति, ४. कीर्ति, ५. बुद्धि, ६. लक्ष्मी ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से दक्षिण दिशा में छ: महानदियां हैं । यथा- गंगा, सिंधु, रोहिता, रोहितांशा, हरी, हरिकांता । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से उत्तर दिशा में छ: महानदियाँ हैं, यथानरकाता, नारीकांता, सुवर्णकूला, रुप्यकूला, रक्ता, रक्तवती । जम्बूद्वीप वर्ती मेरु से पूर्व में सीता महानदी के दोनों किनारों पर छः अन्तर नदियाँ हैं, यथा- ग्राहवती, द्रहवती, पंकवती, तप्तजला, मत्तजला, उन्मत्तजला । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर छ: अन्तरनदियां हैं । यथा- क्षीरोदा, सिंहश्रोता, अंतर्वाहिनी, उर्मिमालिनी, फेनमालिनी, गम्भीरमालिनी ।
___ धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में छह अकर्म भूमियाँ हैं, यथा- हैमवत आदि नदी-सूत्र पर्यन्त जम्बूद्वीप के समान ग्यारह-सूत्र कहें । घातकीखण्ड के पश्चिमार्ध मे जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं । पुष्करवर द्वीपा के पूर्वार्ध में जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं । पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं ।
[५७४] ऋतुएँ छः हैं, यथा- प्रावृट्-आषाढ़ और श्रावण मास । वर्षा तु-भाद्रपद