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स्थान- ५/२/४५४
[४५४] पांच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में प्रवेश करे तो भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । यथा- पर सैन्य से नगर घिर गया हो या आक्रमण के भय से नगर के द्वार बन्द कर दिये गए हों और श्रमण ब्राह्मण आहार- पानी के लिए कहीं आ जा न सकते हों तो श्रमण - निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में सूचना देने के लिए जा सकता है । प्रातिहारिक (जो वस्तु लाकर वापस दी जाय) पीठ, फलक, संस्तारक आदि वस्तुयें देने के लिए श्रमणनिर्ग्रन्थ अन्तःपुर में जा सकता है । दुष्ट अश्व या उन्मत्त हस्ति के सामने आने पर भयभीत श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में जा सकता है । कोई जबर्दस्त हाथ पकड़ कर श्रमण निर्ग्रन्थ को अन्तःपुर में ले जावे तो जा सकता है । नगर से बाहर उद्यान में गए हुए श्रमण को यदि अन्तःपुर वाले घेर कर क्रीड़ा करें तो वह श्रमण अन्तःपुर में प्रविष्ट ही माना जाता है ।
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[४५५] पांच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास न करने पर भी गर्भ धारण कर लेती है, यथा- जिस स्त्री की योनि अनावृत्त हो और वह जहां पर पुरुष का वीर्य स्खलित हुआ है ऐसे स्थान पर इस प्रकार बैठे कि जिससे शुक्राणु योनि में प्रविष्ट हो जाय तो - शुक्र लगा हुआ वस्त्र योनि में प्रवेश करे तो जानबूझकर स्वयं शुक्र को योनि में प्रविष्ट करावे तोदूसरे के कहने से शुक्राणुओं को योनि में प्रवेश करे तो - नदी नाले के शीतल जल में आचमन के लिए कोई स्त्री जावे और उस समय उसकी योनि में शुक्राणु प्रविष्ट हो जाए तो -
पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है, यथा - जिसे युवावस्था प्राप्त नहीं हुई है, वह जिसकी युवावस्था बीत गई है, वह जो जन्म से वन्ध्या हो, वह जो रोगी हो, वह जिसका मन शोक से संतप्त हो ।
पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है । यथा- जिसे नित्य रजस्त्राव होता है, वह जिसे कभी रजस्त्राव नहीं होता है, वह जिसके गर्भाशय का द्वार रोग से बन्द हो गया हो, वह जिसके गर्भाशय का द्वार रोगग्रसित हो, वह जो अनेक पुरुषों के साथ अनेक बार सहवास करती हो, वह ।
पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है । यथा - रजस्त्राव काल में पुरुष के साथ विधिवत् सहवास न करनेवाली । योनि-दोष से शुक्राणुओं के नष्ट होने पर । जिसका पित्त पधान रक्त हो वह । गर्भ धारण से पूर्व देवता द्वारा शक्ति नष्ट किये जाने पर । संतान होना भाग्य में न हो तो ।
[४५५] पांच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक जगह ठहरे, सोयें या बैठें तो भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है । यथा - निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कदाचित् अनेक योजन लम्बी, निर्जन एवं अगम्य अटवी में पहुँच जावे तो- किसी ग्राम, नगर यावत् राजधानी में निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थियों में से किसी एक को ही उपाश्रय मिला हो तो - नागकुमार या सुपर्णकुमारावास में स्थान मिला हो तो - निर्ग्रन्थियों के वस्त्र यदि चोर ले जावें तो- यदि तरुण गुण्डे निर्ग्रन्थियों के साथ बलात्कार करना चाहें तो
पाँच कारणों से अचेल निर्ग्रन्थ सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ एक स्थान में रहे तो भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । यथा - विक्षिप्त चित्त श्रमण के साथ यदि अन्य श्रमण न हो तो - इसी प्रकार हर्षातिरेक से दृप्तचित्त यक्षाविष्ट और वायु रोग से उन्मत्त हो तो - किसी साध्वी का पुत्र दीक्षित हो और उसके साथ यदि अन्य श्रमण न हो तो ।