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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद निश्चय करके गोपद ही तिरता है । एक तैराक ऐसा होता है जो गोपद तिरने का निश्चय करके समुद्र को तिरता है । एक तैराक ऐसा होता है जो गोपद तिरने का निश्चय करके गोपद ही तिरता है ।
तैराक चार प्रकार के हैं । यथा-एक तैराक एक बार समुद्र को तिरकर पुनः समुद्र को तिरने में असमर्थ होता है । एक तैराक एक बार समुद्रको तिरके दूसरी बार गोपद को तिरने में भी असमर्थ होता है । एक तैराक एक बार गोपद को तिर करके पुनः समुद्र को पार करने में असमर्थ होता है। एक तैराक एक बार गोपद को तिर करके पुनः गोपद को पार करने में भी असमर्थ होता है ।
३८७] कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण (टूटा-पूटा) नहीं है और पूर्ण (मधु से भरा हुआ है) है । एक कुम्भ पूर्ण है, किन्तु खाली है । एक कुम्भ पूर्ण (मधु से भरा हुआ है) है किन्तु अपूर्ण (टूटा-फूटा) है । एक कुम्भ अपूर्ण है (टूटा फूटा है) और अपूर्ण है (खाली है) इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष जात्यादि गुण से पूर्ण है और ज्ञानादि गुण से भी पूर्ण है । एक पुरुष जात्यादि गुण से पूर्ण है किन्तु ज्ञानादि गुण से रहित । एक पुरुष ज्ञानादि गुण से सहित है किन्तु जात्यादि गुण से पूर्ण है । एक पुरुष जात्यादि गुण से भी रहित है और ज्ञानादि गुण से भी रहित है ।।
कुम्भ चार प्रकार के है । यथा-एक कुम्भ पूर्ण है और देखनेवाले को पूर्ण जैसा ही दीखता है । एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु देखनेवाले को अपूर्ण जैसा ही देखता है । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु देखनेवाले को पूर्ण जैसा ही दीखता हैं । एक कुम्भ अपूर्ण है और देखनेवाले को अपूर्ण जैसा ही दीखता हैं । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष धन आदि से पूर्ण है और उस धन का उदारतापूर्वक उपभोग करता हैं अतः पूर्ण जैसा ही प्रतीत होता है । एक पुरुष पूर्ण है (धनादि से पूर्ण है) किन्तु उस धन का उपभोग नहीं करता अतः अपूर्ण (धन हीन) जैसा ही प्रतीत होता है । एक पुरुष अपूर्ण है (धनादि से परिपूर्ण नहीं है) किन्तु समय-समय पर धन का उपयोग करता है अतः पूर्ण (धनी) जैसी ही प्रतीत होता है । एक पुरुष अपूर्ण है (धनादि से परिपूर्ण भी नहीं है) और अपूर्ण (निर्धन) जैसा ही प्रतीत
होता है ।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण है (जल आदि से पूर्ण है) और पूर्ण रूप है (सुन्दर है) एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु अपूर्ण रूप है (सुन्दर) शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष पुर्ण है (ज्ञानादि से पूर्ण है) और पूर्ण रूप है (संयत वेषभूषा से युक्त है) एक पुरुष पूर्ण है किन्तु पूर्ण रूप नहीं है (संयत वेषभूषा से युक्त नहीं है) शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें ।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण (जलादि से) है और (स्वर्णादि मूल्यवान धातु का बना हुआ होने से) प्रिय है । एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु (मृत्तिका आदि तुच्छ द्रव्यों का बना हुआ होने से) अप्रिय है । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु (स्वर्णादि मूल्यवान धातुओं का बना हुआ होने से) प्रिय है । एक कुम्भ अपूर्ण है और अप्रिय भी है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (धन या श्रुत आदि से पूर्ण है और उदार हृदय है अतः प्रिय है । एक पुरुष पूर्ण है किन्तु मलिन हृदय होने से अप्रिय है । शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें ।