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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद वह नहीं मिलेगा, तब उसी को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री-पुरुषों व पख्रिाजक-पब्रिाजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा । उनके साथ धुलमिल जाएगा । वे गृहस्थ-गृहस्थपत्नियाँ आदि मत्त एवं अन्यमनस्क होकर अपने आपको भूल जाएँगे, साधु अपने को भूल जाएगा । अपने को भूलकर वह स्त्री शरीर पर या नपुंसक पर आसक्त हो जाएगा । अथवा स्त्रियाँ या नपुसंक उस भिक्षु के पास आकर कहेंगे --- आयुष्मन् श्रमण ! किसी बगीचे या उपाश्रय में रात को या विकाल में एकान्त में मिलें । फिर कहेंगे-ग्राम के निकट किसी गुप्त, प्रच्छन्न, एकान्तस्थान में हम मैथुन-सेवन करेंगे । उस प्रार्थना को कोई एकाकी अनभिज्ञ साधु स्वीकार भी कर सकता है । यह (साधु के लिये सर्वथा) अकरणीय है यह जानकर (संखडि में न जाए) । संखडि में जाना कर्मो के आस्त्रव का कारण है, अथवा दोषों का आयतन है । इसमें जाने से कर्मों का संचय बढ़ता जाता है; इसलिए संयमी निर्ग्रन्थ संखडि को संयम खण्डित करने वाली जानकर उसमें जाने का विचार भी न करे । [३५०] वह भिक्षु या भिक्षुणी पूर्व-संखडि या पश्चात्-संखडि में से किसी एक के विषय में सुनकर मन में विचार करके स्वयं बहुत उत्सुक मन से जल्दी-जल्दी जाता है । क्योंकि वहाँ निश्चित ही संखडि है । वह भिक्षु उस संखडिवाले ग्राम में संखडि से रहित दूसरेदूसरे घरों से एषणीय तथा वेश से लब्ध उत्पादनादि दोषरहित भिक्षा से प्राप्त आहार को ग्रहण करके वहीं उसका उपभोग नहीं कर सकेगा । क्योंकि वह संखडि के भोजन-पानी के लिये लालायित है । वह भिक्षु मातृस्थान का स्पर्श करता है । अतः साधु ऐसा कार्य न करे । वह भिक्षु उस संखडि वाले ग्राम में अवसर देखकर प्रवेश करे, संखडि वाले घर के सिवाय, दूसरे-दूसरे घरों से सामुदानिक भिक्षा से प्राप्त एषणीय तथा केवल वेष से प्राप्त - धात्रीपिण्डादि दोषरहित पिण्डपात को ग्रहण करके उसका सेवन कर ले । [३५१] वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि अमुक गाँव, नगर यावत् राजधानी में संखडि है । तो संखडि को (संयम को खण्डित करने वाली जानकर) उस गाँव यावत् राजधानी में संखडि की प्रतिज्ञा से जाने का विचार भी न करे । केवली भगवान् कहते हैं - यह अशुभ कर्मों के बन्ध का कारण है । चरकादि भिक्षाचरों की भीड़ से भरी-आकीर्ण—और हीन-अवमा ऐसी संखडि में प्रविष्ट होने से (निम्नोक्त दोषों के उत्पन्न होने की सम्भावना है-) सर्वप्रथम पैर से पैर– टकराएँगे या हाथ से हाथ संचालित होंगे; पात्र से पात्र रगड़ खाएगा, सिर से सिर का स्पर्श होकर टकराएगा अथवा शरीर से शरीर का संघर्षण होगा, डण्डे, हड्डी, मुट्ठी, ढेला-पत्थर या खप्पर से एक दूसरे पर प्रहार होना भी संभव है । वे परस्पर सचित्त, ठण्डा पानी भी छींट सकते हैं, सचित्त मिट्टी भी फेंक सकते हैं । वहाँ अनैषणीय आहार भी उपभोग करना पड़ सकता है तथा दूसरों को दिए जाने वाले आहार को बीच में से लेना भी पड़ सकता है । इसलिए वह संयमी निर्ग्रन्थ इस प्रकार की जनाकीर्ण एवं हीन संखडि में संखडि के संकल्प से जाने का बिल्कुल विचार न करे । [३५२] भिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि यह आहार एषणीय है या अनैषणीय ? यदि उसका चित्त विचिकित्सा से युक्त हो, उसकी लेश्या अशुद्ध
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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