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________________ ६८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद के हाथ में हो, पर - (दाता) के पात्र में हो तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय मानकर, प्राप्त होने पर ग्रहण न करे । कदाचित् वैसा आहार ग्रहण कर लिया हो तो वह उस आहार को लेकर एकान्त में चला जाए या उद्यान या उपाश्रय में ही जहाँ प्राणियों के अंडे न हों, जीव जन्तु न हों, बीज न हों, हरियाली न हो, ओस के कण न हों, सचित्त जल न हो तथा चीटियां, लीलन-फूलन, गीली मिट्टी या दलदल, काई या मकड़ी के जाले एवं दीमकों के घर आदि न हों, वहाँ उस संसक्त आहार से उन आगन्तुक जीवों को पृथक् करके उस मिश्रित आहार को शोध-शोधकर फिर यतनापूर्वक खा ले या पी ले । यदि वह उस आहार को खाने-पीने में असमर्थ हो तो उसे लेकर एकान्त स्थान में चला जाए । वहाँ जाकर दग्ध स्थंडिलभूमि पर, हुड्डियों के ढेर पर, लोह के कूड़े के ढेर पर, तुष के ढेर पर, सूखे गोबर के ढेर पर या इसी प्रकार के अन्य निर्दोष एवं प्रासुक स्थण्डिल का भलीभाँति निरीक्षण करके, उसका अच्छी तरह प्रमार्जन करके, यतनापूर्वक उस आहार को वहाँ परिष्ठापित कर दे । [३३६] गृहस्थ के घर में भिक्षा प्राप्त होने की आशा से प्रविष्ट हुआ भिक्षु या भिक्षुणी यदि इन औषधियों को जाने कि वे अखण्डित हैं, अविनष्ट योनि हैं, जिनके दो या दो से अधिक टुकड़े नहीं हुए हो, जिनका तिरछा छेदन नहीं हुआ है, जीव रहित नहीं हैं, अभी अधपकी फली हैं, जो अभी सचित व अभग्न हैं या अग्नि में भुंजी हुई नहीं हैं, तो उन्हें देखकर उनको अप्रासुक एवं अनेषणीय समझकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे । [३३७] गृहस्थ के घर में भिक्षा लेने के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसी औषधियों को जाने कि वे अखण्डित नहीं हैं, यावत् वे जीव रहित हैं, कच्ची फली अचित हो गयी हैं, भग्न हैं या अग्नि में भुंजी हुई हैं, तो उन्हें देखकर, उन्हें प्रासुक एवं एषणीय समझकर प्राप्त होती हों तो ग्रहण कर ले । " __ गृहस्थ के घर भिक्षा निमित्त गया हुआ भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जान ले कि शाली, धान, जौ, गेहूँ आदि में सचित्त रज बहुत हैं, गेहूँ आदि अग्नि में पूँजे हुए - अर्धपक्क हैं | गेहूँ आदि के आटे में तथा धान-कूटे चूर्ण में भी अखण्ड दाने हैं, कणसहित चावल के लम्बे दाने सिर्फ एक बार भूने हुए हैं या कूटे हुए हैं, तो उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय मानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे । अगर... वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि शाली, धान, जौ, गेहूँ आदि रज वाले नहीं हैं, आग में भुंजे हए गेहँ आदि तथा गेहँ आदि का आटा, कुटा हआ धान आदि अखण्ड दानों से रहित है, कण सहित चावल के लम्बे दाने, ये सब एक, दो या तीन बार आग में भुने हैं तो उन्हें प्रासुक और एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले । [३३८] गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने के इच्छुक भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पिण्डदोषों का परिहार करने वाला साधु अपारिहारिक साधु के साथ भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे, और न वहाँ से निकले ।। वह भिक्षु या भिक्षुणी बाहर विचारभूमि या विहार भूमि से लौटते या वहाँ प्रवेश करते हुए अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक, अपारिहारिक साधु के
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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