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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
साम्य को जाने ।
___ इस सत्य (साम्य) के परिशीलन में आत्म-रमण की परिज्ञा करके आत्मलीन होकर विचरण करे । मोक्षार्थी अथवा संयम-साधना द्वारा निष्ठितार्थ वीर मुनि आगम-निर्दिष्ट अर्थ या आदेश के अनुसार सदा पराक्रम करे । ऐसा मैं कहता हूँ ।
[१८२] ऊपर नीचे, और मध्य में स्त्रोत हैं । ये स्त्रोत कर्मों के आस्त्रवद्वार हैं, जिनके द्वारा समस्त प्राणियों को आसक्ति पैदा होती है, ऐसा तुम देखो ।
[१८३] (राग-द्वेषरूप) भावावर्त का निरीक्षण करके आगमविद् पुरुष उससे विरत हो जाए । विषायासक्तियों के या आस्त्रवों के स्त्रोत को हटा कर निष्क्रमण करनेवाला यह महान् साधक अकर्म होकर लोक को प्रत्यक्ष जानता, देखता है ।
(इस सत्य का) अन्तर्निरीक्षण करनेवाला साधक इस लोक में संसार-भ्रमण और उसके कारण की परिज्ञा करके उन (विषय-सुखों) की आकांक्षा नहीं करता ।
[१८४] इस प्रकार वह जीवों की गति-आगति के कारणों का परिज्ञान करके व्याख्यानरत मुनि जन्म-मरण के वृत्त मार्ग को पार कर जाता है ।
(उस मुक्तात्मा का स्वरूप या अवस्था बताने के लिए) सभी स्वर लौट जाते हैं . वहाँ कोई तर्क नहीं है । वहाँ मति भी प्रवेश नहीं कर पाती, वह (बुद्धि ग्राह्य नहीं है) । वहाँ वह समस्त कर्ममल से रहित ओजरूप प्रतिष्ठान से रहित और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) ही है ।
वह न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है और न परिमण्डल है । वह न कृष्ण है, न नीला है, न लाल है, न पीला है और न शुक्ल है । न सुगन्ध(युक्त) है और न दुर्गन्ध (युक्त) है । वह न तिक्त है, न कड़वा है, न कसैला है, न खट्टा है और न मीठा है, वह न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न ठण्डा है, न गर्म है, न चिकना है, और न रूखा है । वह कायवान् नहीं है । वह जन्मधर्मा नही है, वह संगरहित है, वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है ।
वह (मुक्तात्मा) परिज्ञ है, संज्ञ है । वह सर्वतः चैतन्यमय है । (उसके लिए) कोई उपमा नहीं है । वह अरूपी (अमूर्त) सत्ता है । वह पदातीती है, उसको बोध कराने के लिए कोई पद नहीं है ।
[१८५] वह न शब्द है, न रूप है, न गन्ध है, न रस है और न स्पर्श है । बस इतना ही है |- ऐसा में कहता हूँ । (अध्ययन-५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण)
(अध्ययन-६-धूत)
उद्देशक-१ [१८६] इस मर्त्यलोक में मनुष्यों के बीच में ज्ञाता वह पुरुष आख्यान करता है । जिसे ये जीव-जातियाँ सब प्रकार से भली-भाँति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट ज्ञान का सम्यग् आख्यान करता है ।
वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उनके लिए मुक्ति-मार्ग का निरूपण करता है, जो