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________________ २१४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद एक नौकर को आज्ञा देता है तो चार-मनुष्य बिना कहे ही वहाँ आकर सामने खड़े हो जाते हैं, (और हाथ जोड़ कर पूछते हैं-) के प्रिय ! कहिये, हम आपकी क्या सेवा करें ? क्या लाएं, क्या भेंट करें ?, क्या-क्या कार्य आपको क्या हितकर है, क्या इष्ट है ? आपके मुख को कौन-सी वस्तु स्वादिष्ट है ? बताइए ।" उस पुरुष को इस प्रकार सुखोपभोगमग्न देख कर अनार्य यों कहते हैं यह पुरुष तो सचमुच देव है । यह पुरुष तो देवों से भी श्रेष्ठ है । यह व तो देवों का-सा जीवन जी रहा है इसके आश्रय से अन्य लोग भी आनन्दपूर्वक जीते हैं । किन्तु इस प्रकार उसी व्यक्ति को देख कर आर्य पुरुष कहते हैं-यह पुरुष तो अत्यन्त क्रूर कर्मों में प्रवृत्त है, अत्यन्त धूर्त है, अपने शरीर की यह बहुत रक्षा करता है, यह दिशावर्ती नरक के कृष्णपक्षी नारकों में उत्पन्न होगा । यह भविष्य में दुर्लभबोधि प्राणी होगा । कई मूढ़ जीव मोक्ष के लिए उद्यत होकर भी इस को पाने के लिए लालायित हो जाते हैं । कई गृहस्थ भी इस स्थान (जीवन) को पाने की लालसा करते रहते हैं । कई अत्यन्त विषयसुखान्ध या तृष्णान्ध मनुष्य भी इस स्थान के लिए तरसते हैं । यह स्थान अनार्य है, विलज्ञान-रहित है, परिपूर्णसुखरहित है, सुन्यायत्त से रहित है, संशुद्धि-पवित्रता से रहित है, मायादि शल्य को काटने वाला नहीं है, यह सिद्धि मार्ग नहीं है, यह मुक्ति का मार्ग नहीं है, यह निर्वाण का मार्ग ही है, यह निर्याण का मार्ग नहीं है, यह सर्वदुःखों का नाशक मार्ग नहीं यह एकान्त मिथ्या और असाधु स्थान है । यही अधर्मपक्षनामक प्रथम स्थान का विकल्प है, ऐसा कहा है । [६६५] इसके पश्चात् द्वितीय स्थान धर्मपक्ष का विकल्प इस प्रकार कहा जाता हैइस मनुष्यलोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में अनेक प्रकार के मनुष्य रहते हैं, जैसे कि कई आर्य होते हैं, कई अनार्य अथवा कई उच्चगोत्रीय होते हैं, कई नीचगोत्रीय, कई विशालकाय होते हैं, कई ह्रस्वकाय कई अच्छे वर्ण के होते हैं, कई खराब वर्ण के अथवा कई सुरूप होते हैं, कई कुरूप । उन मनुष्यों के खेत और मकान परिग्रह होते हैं । यह सब वर्णन 'पौण्डरीक' के प्रकरण के समान समझना । यह स्थान आर्य है, केवलज्ञान की प्राप्ति का कारण हैं, (यहाँ से लेकर) 'समस्त दुःखों का नाश करनेवाला मार्ग हैं (यावत्-) । यह एकान्त सम्यक् और उत्तम स्थान है । इस प्रकार धर्मपक्षनामक द्वितीय स्थान का विचार प्रतिपादित किया गया है । [६६६] इसके पश्चात् तीसरे स्थान मिश्रपक्ष का विकल्प इस प्रकार है- जो ये आरण्यक हैं, यह जो ग्राम के निकट झोंपड़ी या कुटिया बना कर रहते हैं, अथवा किसी गुप्त क्रिया का अनुष्ठान करते हैं, या एकान्त में रहते हैं, यावत् फिर वहाँ से देह छोड़कर इस लोक में बकरे की तरह मूक के रूप में या जन्मान्ध के रूप में आते हैं । यह स्थान अनार्य है, केवलज्ञान-प्राप्ति से रहित है, यहाँ तक कि यह समस्त दुःखों से मुक्त करानेवाला मार्ग नहीं है । यह स्थान एकान्त मिथ्या और बुरा है ।। इस प्रकार यह तीसरे मिश्रस्थान का विचार (विभंग) कहा गया है । [६६७] इसके पश्चात् प्रथम, स्थान जो अधर्मपक्ष है, उसका विश्लेषणपूर्वक विचार किया जाता है इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कई मनुष्य ऐसे होते हैं, जो गृहस्थ
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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