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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
मैं कहता हूँ - जल के आश्रित अनेक प्रकार के जीव रहते है ।
[२५] हे मनुष्य ! इस अनगार-धर्म में, जल को 'जीव' कहा है । जलकाय के जो शस्त्र हैं, उन पर चिन्तन करके देख !
[२६] भगवान् ने जलकाय के
अनेक शस्त्र बताये हैं ।
[२७] जलकाय की हिंसा, सिर्फ हिंसा ही नहीं, वह अदत्तादान भी है । [२८] हमें कल्पता है । अपने सिद्धान्त के अनुसार हम पीने के लिए जल ले सकते हैं ।' 'हम पीने तथा नहाने के लिए भी जल का प्रयोग कर सकते हैं ।'
[२९] इस तरह अपने शास्त्र का प्रमाण देकर या नानाप्रकार के शस्त्रों द्वारा जलकाय के जीवों की हिंसा करते हैं ।
[३०] अपने शास्त्र का प्रमाण देकर जलकाय की हिंसा करने वाले साधु, हिंसा के पाप से विरत नहीं हो सकते ।
[३१] जो यहाँ, शस्त्र प्रयोग कर जलकाय के जीवों का समारम्भ करता है, वह इन आरंभ से अनभिज्ञ है । जो जलकायिक जीवों पर शस्त्र प्रयोग नहीं करता, वह आरंभों का ज्ञाता है, वह हिंसा - दोष से मुक्त होता है । बुद्धिमान मनुष्य यह जानकर स्वयं जलकाय का समारंभ न करे, दूसरों से न करवाए, और उसका समारंभ करने वालों का अनुमोदन न करे । जिसको जल-सम्बन्धी समारंभ का ज्ञान होता हैं, वही परिज्ञातकर्मा ( मुनि) होता है । ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन- १ - उद्देसक - ४
[३२] मैं कहता हूँ - वह कभी भी स्वयं लोक (अग्निकाय) के अस्तित्व का, का अपलाप न करे । न अपनी आत्मा के अस्तित्व का अपलाप करे । क्योंकि जो लोकं (अग्निकाय) का अपलाप करता है, वह अपने आप का अपलाप करता है । जे अपने आप का अपलाप करता है वह लोक का अलाप करता है ।
[३३] जो दीर्घलोकशस्त्र (अग्निकाय) के स्वरूप को जानता है, वह अशस्त्र (संयम) का स्वरूप भी जानता है । जो संयम का स्वरूप जानता है वह दीर्घलोक -शस्त्र का स्वरूप भी जानता है ।
[३४] वीरों ने, ज्ञान-दर्शनावरण आदि कर्मों को विजय कर यह (संयम का पूर्ण स्वरूप) देखा है । वे वीर संयमी, सदा यतनाशील और सदा अप्रमत्त रहने वाले थे । [३५] जो प्रमत्त है, गुणों का अर्थी है, वह हिंसक कहलाता है ।
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[३६] यह जानकर मेधावी पुरुष (संकल्प करे ) - अब मैं वह (हिंसा) नहीं करूंगा जे मैंने प्रमाद के वश होकर पहले किया था ।
[३७] तू देख ! संयमी पुरुष जीव-हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं । और उनको भी देख, जो हम 'अनगार हैं' यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के शस्त्रों से अग्निकाय की हिंसा करते हैं । अग्निकाय के जीवों की हिंसा करते हुए अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं ।
इस विषय में भगवान् ने परिज्ञा का निरूपण किया है । कुछ मनुष्य इस जीवन के