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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[२८०] वह कहती है-भिक्षु ! मेरे केशों के कारण यदि तुम मेरे साथ विहरण करना नहीं चाहते तो मैं केशलुंचन भी कर लूँगी । तुम मुझे छोड़कर अन्यत्र विचरण मत करो ।
[२८१] जब भिक्षु उसे उपलब्ध हो जाता है तब उसे इधर-उधर प्रेषित करती है । (वह कहती है) लौकी काटो, उत्तम फल लाओ ।
[२८२] शाक पकाने के लिए काष्ठ (लाओ जिससे) रात्रि में प्रकाश भी होगा । मेरे पैर रचाओ और आओ मेरी पीठ मल दो ।
[२८३] मेरे वस्त्रों का प्रतिलेख करो । अन्न पान ले आओ । गंध एवं रजोहरण लाओ । नांपित को भी बुलाओ ।
[२८४] अन्जनी, अलंकार और वीणा लाओ । लोध्र व लोध्र-कुसुम, बासुरी और गुटिका लाओ ।
[२८५] कोष्ठ तगर, अगर, उशीर से संपृष्ट चूर्ण, मुँह पर लगाने के लिए तेल एवं बांस की संदूक लाओ ।
[२८६] नंदी-चूर्ण छत्र उपानत् एवं सूप छेदन के लिए शस्त्र लाओ । नील से वस्त्र रंग दो ।
[२८७] शाक पकाने के लिए सूफणि (पात्र), आंबले, घर, तिलक करणी, अंजनशलाका तथा ग्रीष्म ऋतु के लिए पंखा लाओ ।
[२८८] संदशक, कधी और केश कंकण लाओ, दर्पण प्रदान करो । दन्त प्रक्षालन का साधन दो ।
[२८९] सुपारी, ताम्बूल सुई-धागा, मूत्र-पात्र, मोय मेह (पीकदान) सूप, ऊखल एवं गालन के लिए पात्र लाओ ।
[२९०] आयुष्मन् ! पूजा-पात्र और लघु-पात्र लाओ | शौचालय का खनन करो । पुत्र के लिए शरपात (धनुष) एवं श्रामणेर के लिए गोरथक (तीन वर्ष का बैल) लाओ ।
[२९१] कुमार के लिए घंटा, डमरू, और वस्त्र से निर्मित गेंद लादो । भर्ता ! देखो वर्षा ऋतु सन्निकर है, अतः आवास की शोध करो ।
२९२] नव सूत्र निर्मित आसन्दिक (चारपाई) और संक्रमार्थ/चलने के लिए काष्ठपादुका लाओ । पुत्र-दोहद पूर्ति के लिए भी ये दास की तरह आज्ञापित होते हैं ।
[२९३] पुत्र उत्पन्न होने पर आज्ञा देती है इसे ग्रहण करो अथवा छोड़ दो । इस तरह कुछ पुत्र-पोषक ऊँट की तरह भारवाही हो जाते हैं ।
[२९४] रात्रि में जागृत होने पर पुत्र को धाय की तरह पुनः सुलाते हैं । वे लज्जित होते हुए भी रजक की तरह वस्त्र प्रक्षालक हो जाते हैं ।
. [२९५] इस प्रकार पूर्व में अनेकों ने ऐसा किया है । जो भोगासक्त हैं वे दास, मृग एवं पशुवत् हो जाते हैं । वे पशु के अतिरिक्त कुछ नहीं हो पाते ।
[२९६] इस प्रकार उन (स्त्रियों) के विषय में विज्ञापित किया गया । भिक्षु स्त्री संस्तव एवं संवास का त्याग करे । ये काम वृद्धिगत है, इन्हें वय॑कर कहा गया है ।।
[२९७] ये भयोत्पादक है । श्रेयस्कर नहीं है । अतः भिक्षु आत्म-निरोध करके स्त्री, पशु, स्वयं एवं प्राणियों (के गुह्यांगो) का स्पर्श न करे ।