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________________ आचार-२/४/१६/-/५५० कहलाता है । [५५१] मनुष्यों ने इस संसार में द्वारा जिसरूप से - प्रकृति- स्थिति आदि रूप से कर्म बांधे हैं, उसी प्रकार उन कर्मों का विमोक्ष भी बताया गया है । इस प्रकार जो विज्ञाता मुनि बन्ध और विमोक्ष का स्वरूप यथातथ्य रूप से जानता है, वह मुनि अवश्य ही संसार का या कर्मों का अंत करनेवाला कहा गया है । १४९ [५५२] इस लोक परलोक या दोनों लोको में जिसका किंचिन्मात्र भी रागादि बन्धन नहीं है, तथा जो साधक निरालम्ब है, एवं जो कहीं भी प्रतिबद्ध नहीं है, वह साधु निश्चय ही संसार में गर्भादि के पर्यटन के प्रपंच से विमुक्त हो जाता है । ऐसा मैं कहता हूँ । चूलिका-४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण 5 श्रुतस्कन्ध - २ हिन्दी अनुवाद पूर्ण १ आचार - प्रथम अङ्गसूत्र हिन्दी अनुवाद पूर्ण
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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