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________________ १३६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश में ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ राजा की वाशिष्ठगोत्रीय पत्नी त्रिशला के अशुभ पुद्गलों को हटा कर उनके स्थान पर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में गर्भ को स्थापित किया और त्रिशला का गर्भ लेकर दक्षिणब्राह्मणकुण्डपुर सन्निवेश में कुडाल गोत्रीय कृषभदत्त ब्राह्मण की जालंधरगोत्रीया देवानन्दाब्राह्मणी की कुक्षि में रखा । ___ आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान महावीर गर्भावास में तीन ज्ञान से युक्त थे । 'मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊँगा',स यह वे जानते थे, मैं संहृत किया जा चुका हूँ', यह भी वे जानते थे और यह भी वे जानते थे कि 'मेरा संहरण हो रहा है । उस काल और उस समय में त्रिशला क्षत्रियाणी ने अन्यदा किसी समय नौ मास साढ़े सात अहोरात्र प्रायः पूर्ण व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वितीय पक्ष में अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर सुखपूर्वक (श्रमण भगवान् महावीर को) जन्म दिया । जिस रात्रि को त्रिशला क्षत्रियाणी ने सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों के स्वर्ग से आने और मेरूपर्वत पर जाने-यों ऊपर-नीचे आवागमन से एक महान् दिव्य देवोद्योत हो गया, देवों के एकत्र होने से लोक में एक हलचल मच गई, देवों के परस्पर हास परिहास के कारण सर्वत्र कलकलनाद व्याप्त हो गया । जिस रात्रि त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्वस्थ श्रमण भगवान् महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में बहुत से देवों और देवियों ने एक बड़ी भारी अमृतवर्षा, सुगन्धित पदार्थों की वृष्टि और सुवासित चूर्ण, पुष्प, चांदी और सोन की वृष्टि की । जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने आरोग्यसम्पन्न श्रमण भगवान् महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों ने श्रमण भगवान् महावीर का कौतुकमंगल, शुचिकर्म तथा तीर्थंकराभिषेक किया । ___ जब से श्रमण भगवान् महावीर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में आए, तभी से उस कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक्य, मोती, शंख, शिला और प्रवाल (मूंगा) आदि की अत्यंत अभिवृद्धि होने लगी ।। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के माता-पिता ने भगवान् महावीर के जन्म के दस दिन व्यतीत हो जाने के बाद ग्यारहवें दिन अशुचि निवारण करके शुचीभूत होकर, प्रचुर मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ बनवाए । उन्होंने अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धि-वर्ग को आमंत्रित किया । उन्होंने बहुत से शाक्य आदि श्रमणों, ब्राह्मणों, दरिद्रों, भिक्षाचरों, भिक्षाभोजी, शरीर पर भस्म स्माकर भिक्षा मांगने वालों आदि को भी भोजन कराया, उनके लिए भोजन सुरक्षित रखाया, कई लोगों को भोजन दिया, याचकों में दान बाँटा । अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धिजन आदि को भोजन कराया । पश्चात उनके समक्ष नामकरण के सम्बन्ध में कहा- जिस दिन से यह बालक त्रिशलादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप में आया, उसी दिन से हमारे कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि पदार्थों की अतीव अभिवृद्धि हो रही है । अतः इस कुमार का गुण-सम्पन्न नाम 'वर्द्धमान' हो ।
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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