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________________ आचार- २/२/११/-/५०३ १३१ साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि – जहाँ भैंसों के युद्ध, सांडों के युद्ध, अश्व युद्ध, यावत् कपिंजल युद्ध होते हैं तथा अन्य इसी प्रकार के पशु-पक्षियों के लड़ने से या लड़ने के स्थानों में होने वाले शब्द, उनको सुनने हेतु जाने का संकल्प न करे । साधु या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि - वर-वधू युगल आदि के मिलने के स्थानों में या वरवधू-वर्णन किया जाता है, ऐसे स्थानों में, अश्वयुगल स्थानों में, हस्तियुगल स्थानों में तथा इसी प्रकार के अन्य कुतूहल एवं मनोरंजक स्थानों में, किन्तु ऐसे श्रव्य - गेयादि शब्द सुनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे । [५०४] साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द - श्रवण करते हैं, जैसे कि कथा करने के स्थानों में, तोल - माप करने के स्थानों में या घुड़-दौड़, कुश्ती प्रतियोगिता आदि के स्थानों में, महोत्सव स्थलों में, या जहाँ बड़े-बड़े नृत्यु, नाट्य, गीत, वाद्य, तन्त्री, तल, ताल, त्रुटित वादित्र, ढोल बजाने आदि के आयोजन होते हैं, ऐसे स्थानों में तथा इसी प्रकार के अन्य शब्द, मगर ऐसे शब्दों को सुनने के लिए जाने का संकल्प न करे । साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि जहाँ कलह होते हों, शत्रु सैन्य का भय हो, राष्ट्र का भीतरी या बाहरी विप्लव हो, दो राज्यों के परस्पर विरोधी स्थान हों, वैर के स्थान हों, विरोधी राजाओं के राज्य हों, तथा इसी प्रकार के अन्य विरोधी वातावरण के शब्द, किन्तु उन शब्दों को सुनने की दृष्टि से गमन करने का संकल्प न करे । साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि वस्त्राभूषणों से मण्डित और अलंकृत तथा बहुत से लोगों से घिरी हुई किसी छोटी बालिका को घोड़े आदि पर बिठाकर ले जाया जा रहा हो, अथवा किसी अपराधी व्यक्ति को वध के लिए वधस्थान में ले जाया जा रहा हो, तथा अन्य किसी ऐसे व्यक्ति की शोभायात्रा निकाली जा रही हो, उस संयम होने वाले शब्दों को सुनने की उत्सुकता से वहाँ जाने का संकल्प न करे । साधु या साध्वी अन्य नाना प्रकार के महास्त्रवस्थानों को इस प्रकार जाने, जैसे कि जहाँ बहुत से शकट, बहुत से रथ, बहुत से म्लेच्छ, बहुत से सीमाप्रान्तीय लोग एकत्रित हुए हों, वहाँ कानों से शब्द - श्रवण के उद्देश्य से जाने का मन में संकल्प न करे । साधु या साध्वी किन्हीं नाना प्रकार के महोत्सवों को यों जाने कि जहाँ स्त्रियां, पुरुष, वृद्ध, बालक और युवक आभूषणों से विभूषित होकर गीत गाते हों, बाजे बजाते हों, नाचते हो, हंसते हों, आपस खेलते हों, रतिक्रीड़ा करते हों तथा विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों का उपभोग करते हों, परस्पर बाँटते हों या परोसते हों, त्याग करते हों, परस्पर तिरस्कार करते हों, उनके शब्दों को तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से महोत्सवों में होने वाले शब्दों का कान से सुनने की दृष्टि से जाने का मन में संकल्प न करे । साधु या साध्वी इहलौकिक एवं पारलौकिक शब्दों में, श्रुत-या अश्रुत-शब्दों में, देखे हुए या बिना देखे हुए शब्दों में, इष्ट और कान्त शब्दों में न तो आसक्त हो, न रक्त हो, न गृद्ध हो, न मोहित हो और न ही मूर्च्छित या अत्यासक्त हो । यही (शब्द श्रवण- विवेक ही) उस साधु या साध्वी का आचार - सर्वस्व है, जिसमें सभी अर्थों-प्रयोजनों सहित समित होकर सदा वह प्रयत्नशील रहे । ऐसा मैं कहता हूँ ।
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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