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________________ आचार-२/२/१०/-/५०० १२९ विसर्जन न करे । साधु या साध्वी ऐसे किसी स्थण्डिल को जाने, जैसे–कोट की अटारी हों, किले और नगर के बीच के मार्ग हों, द्वार हों, नगर के मुख्य द्वार हों, ऐसे तथा अन्य इसी प्रकार के सार्वजनिक आवागमन के स्थल हों, तो ऐसे स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे । - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ तिराहे हों, चौक हों, चौहट्टे या चौराहे हों, चतुर्मुख स्थान हों, ऐसे तथा अन्य इसी प्रकार के सार्वजनिक जनपथ हों, ऐसे स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे । ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ लकड़ियाँ जलाकर कोयले बनाए जाते हों, जो काष्ठादि जलाकर राख बनाने के स्थान हों, मुर्दे जलाने के स्थान हों, मृतक के स्तूप हों, मृतक के चैत्य हों, ऐसा तथा इसी प्रकार का कोई स्थण्डिल हो, तो वहाँ पर मल-मूत्र विसर्जन न करे । साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि नदी तट पर बने तीर्थस्थान हो, पंकबहुल आयतन हों, पवित्र जलप्रवाह वाले स्थान हों, जलसिंचन करने के मार्ग हों, ऐसे तथा अन्य इसी प्रकार के जो स्थण्डिल हों, उन पर मल-मूत्र विसर्जन न करे । साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि मिट्टी की नई खान हों, नई गोचर भूमि हों, सामान्य गायों के चारागाह हों, खाने हों, अथवा अन्य उसी प्रकार को कोई स्थण्डिल हो तो उसमें उच्चार-प्रस्त्रवण का विसर्जन न करे । यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, वहाँ डालप्रधान, पत्रप्रधान, मूली, गाजर आदि के खेत हैं, हस्तंकुर वनस्पति विशेष के क्षेत्र हैं, उनमें तथा उसी प्रकार के स्थण्डिल में मल-मूल विसर्जन न करे । साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहाँ बीजक वृक्ष का वन है, पटसन का वन है, धातकी वृक्ष का वन है, केवड़े का उपवन है, आम्रवन है, अशोकवन है, नागवन है, या पुन्नाग वृक्षों का वन है, ऐसे तथा अन्य उस प्रकार के स्थण्डिल, जो पत्रों, पुष्पों, फलों, बीजों का हरियाली से युक्त हों, उनमें मल-मूत्र विसर्जन न करे । [५०१] संयमशील साधु या साध्वी स्वपात्रक या परपात्रक लेकर एकान्त स्थान में चला जाए, जहाँ पर न कोई आता-जाता हो और न कोई देखता हो, या जहाँ कोई रोकटोक न हो, तथा जहाँ द्वीन्द्रिय आदि जीव-जन्तु, यावत् मकड़ी के जाले भी न हों, ऐसे बगीचे या उपाश्रय में अचित्त भूमि पर साधु या साध्वी यतनापूर्वक मल-मूत्र विसर्जन करे । उसके पश्चात् वह उस (भरे हुए मात्रक) को लेकर एकान्त स्थान में जाए, जहाँ कोई न देखता हो और न ही आता-जाता हो, जहाँ पर किसी जीवजन्तु की विराधना की सम्भावना न हो, यावत् मकड़ी के जाले न हों, ऐसे बगीचे में या दग्धभूमि वाले स्थण्डिल में या उस प्रकार के किसी अचित्त निर्दोष पूर्वोक्त निषिद्ध स्थण्डिलों के अतिरिक्त स्थण्डिल में साधु यतनापूर्वक मल-मूत्र परिष्ठापन विसर्जन करे । यही उस भिक्षु या भिक्षुणी का आचार सर्वस्व है, जिसके आचरण के लिए उसे समस्त प्रयोजनों से ज्ञानादि सहित एवं पांच समितियों से समित होकर सदैव-सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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