SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अवधि पूर्ण होने के पश्चात् यहाँ से विहार कर जाएंगे । उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके ठहरने पर क्या करें ? यदि साधु आम खाना या उसका रस पीना चाहता है, तो वहाँ के आम यदि अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त देखे-जाने तो उस प्रकार के आम्रफलों को अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे । __ यदि साधु या साध्वी उस आम्रवन के आमों को ऐसे जाने कि वे हैं तो अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित, किन्तु वे तिरछे कटे हुए नहीं हैं, न खण्डित हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनेषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे । यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, साथ ही तिरछे कटे हुए हैं और खण्डित हैं, तो उन्हें प्रासुक और एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे । यदि साधु या साध्वी आम का आधा भाग, आम की पेशी, आम की छाल या आम की गिरी, आम का रस, या आम के बारीक टुकड़े खाना-पीना चाहे, किन्तु वह यह जाने कि वह आम का अर्ध भाग यावत् आम के बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनेषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे । यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम का आधा भाग यावत् आम के छोटे बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तु वे तिरछे कटे हुए नहीं हैं, और न ही खण्डित हैं तो उन्हें भी अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे । यदि साधु या साध्वी यह जान ले कि आम की आधी फांक से लेकर आम के छोटे बारीक टुकड़े तक अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तिरछे कटे हुए भी हैं और खण्डित भी हैं तो उस को प्रासुक एवं एषणीय मानकर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले । __ वह साधु या साध्वी यदि इक्षुवन में ठहरना चाहे तो जो वहाँ का स्वामी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी हो, उससे क्षेत्र-काल की सीमा खोलकर अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके वहाँ निवास करे । उस इक्षुवन की अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करने से क्या प्रयोजन ? यदि वहाँ रहते हुए साधु कदाचित् ईख खाना या उसका रस पीना चाहे तो पहले यह जान ले कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं हैं ? यदि वैसे हों तो साधु उन्हें अप्रासुक अनेषणीय जानकर छोड़ दे । यदि वे अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं हैं, किन्तु तिरछे कटे हुए या टुकड़े-टुकड़े किये हुए नहीं हैं, तब भी उन्हें पूर्ववत् जानकर न ले । यदि साधु को यह प्रतीति हो जाए कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तिरछे कटे हुए तथा टुकड़े-टुकड़े किये हुए हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर वह ले सकता है । यह सारा वर्णन आम्रवन की तरह समझना चाहिए । यदि साधु या साध्वी ईख के पर्व का मध्यभाग, ईख की गँडेरी, ईख का छिलका या ईख के अन्दर का गर्भ, ईख की छाल या रस, ईख के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े, खाना या पीना चाहे व पहले वह जान जाए कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईख के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं, तो उस प्रकार के उन इक्षु-अवयवों को अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे । साधु साध्वी यदि यह जाने कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईखके छोटे-छोटे कोमल टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तु तिरछे कटे हुए नहीं हैं, तो उन्हें पूर्ववत् जानकर ग्रहण न करे, यदि वे इक्षु
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy