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________________ १२२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करे । उस क्षेत्र या स्थान का जो स्वामी हो, या जो वहाँ का अधिष्ठाता हो उससे इस प्रकार अवग्रह की अनुज्ञा माँगे “आपकी इच्छानुसार -जितने समय तक रहने की तथा जितने क्षेत्र में निवास करने की तुम आज्ञा दोगे, उतने समय तक, उतने क्षेत्र में हम निवास करेंगे । यहाँ जितने समय तक आप की अनुज्ञा है, उतनी अवधि तक जितने भी अन्य साधु आएँगे, उनके लिए भी जितने क्षेत्र-काल की अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करेंगे वे भी उतने ही समय तक उतने ही क्षेत्र में ठहरेंगे, पश्चात वे और हम विहार कर देंगे ।। अवग्रह के अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर फिर वह साधु क्या करे ? वहाँ कोई साधर्मिक, साम्भोगिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में जा जाएँ तो वह साधु स्वयं अपने द्वारा गवेषणा करके लाये हुए अशनादि चतुर्विध आहार को उन साधर्मिक, सांभोगिक एवं समनोज्ञ साधुओं को उपनिमंत्रित करे, किन्तु अन्य साधु द्वारा या अन्य रुग्णादि साधु के लिए लाऐ आहारादि को लेकर उन्हें उपनिमंत्रित न करे । [४९१] पथिकशाला आदि अवग्रह को अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर, फिर वह साधु क्या करे ? यदि वहाँ अन्य साम्भोगिक, साधर्मिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में जा जाएँ तो जो स्वयं गवेषणा करके लाए हुए पीठ, फलक, शय्यासंस्तारक आदि हों, उन्हें उन वस्तुओं के लिए आमंत्रित करे, किन्तु जो दूसरे के द्वारा या रुग्णादि अन्य साधु के लिये लाये हुए पीठ, फलक आदि हों, उनके लिए आमंत्रित न करे । उस धर्मशाला आदि को अवग्रहपूर्वक ग्रहण कर लेने के बाद साधु क्या करे ? जो वहाँ आसपास में गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्र आदि हैं, उनसे कार्यवश सूई, कैंची, कानकुरेदनी, नहरनी-आदि अपने स्वयं के लिए कोई साधु प्रातिहारिक रूप से याचना करके लाया हो तो वह उन चीजों को परस्पर एक दूसरे साधु को न दे-ले । अथवा वह दूसरे साधु को वे चीजें न सौंपे । उन वस्तुओं का यथायोग्य कार्य हो जाने पर वह उन प्रातिहारिक चीजों को लेकर उस गृहस्थ के यहाँ जाए और लम्बा हाथ करके उन चीजों को भूमि पर रख कर गृहस्थ से कहे -यह तुम्हारा अमुक पदार्थ है, यह अमुक है, इसे संभाल लो, देख लो । परन्तु उन सूई आदि वस्तुओं को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ पर रख कर न सौंपे । [४९२] साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो सचित्त, स्निग्ध पृथ्वी यावत्, जीव-जन्तु आदि से युक्त हो, तो इस प्रकार के स्थान की अवग्रह-अनुज्ञा एक बार या अनेक बार ग्रहण न करे । साधु या साध्वी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, जो भूमि से बहुत ऊँचा हो, ह्ठ, देहली, खूटी, ऊखल, मूसल आदि पर टिकाया हुआ एवं ठीक तरह से बंधा हुआ या गड़ा या रखा हुआ न हो, अस्थिर और चल-विचल हो, तो ऐसे स्थान की भी अवग्रह-अनुज्ञा एक या अनेक बार ग्रहण न करे । ऐसे अवग्रह को जाने, जो घर की कच्ची पतली दीवार पर या नदी के तट या बाहर की भीत, शिला या पत्थर के टुकड़ों पर या अन्य किसी ऊँचे व विषम स्थान पर निर्मित हो, तथा दुर्बद्ध, दुर्निक्षिप्त, अस्थिर और चल-विचल हो तो ऐसे स्थान की भी अवग्रह-अनुज्ञा ग्रहण न करे । ऐसे अवग्रह को जाने जो, स्तम्भ, मचान, ऊपर की मंजिल, प्रासाद पर या तलघर में स्थित हो या उस प्रकार के किसी उच्च स्थान पर हो तो ऐसे दुर्बद्ध यावत् चल-विचल स्थान की अवग्रह-अनुज्ञा ग्रहण न करे ।
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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