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________________ ११९ आचार- २/१/६/१/४८६ बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, आदि के उद्देश्य से पात्र बनाया है उसका भी शेष वर्णन वस्त्रैषणा के आलापक के समान समझ लेना चाहिए । साधु या साध्वी यदि यह जाने कि नानाप्रकार के महामूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि लोहे के पात्र, रांगे के पात्र, तांबे के पात्र, सीसे के पात्र, चांदी के पात्र, सोने के पात्र, पीतल के पात्र, हारपुट धातु के पात्र, मणि, काँच और कांसे के पात्र, शंख और सींग के पात्र, दांत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पत्थर के पात्र, या चमड़े के पात्र, दूसरे भी इसी तरह के नानाप्रकार के महा-मूल्यवान पात्रों को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे । साधु या साध्वी फिर भी उन पात्रों को जाने, जो नानाप्रकार के महामूल्यवान् बन्धन वाले हैं, जैसे कि वे लोहे के बन्धन हैं, यावत् चर्म - बंधनवाले हैं, अथवा अन्य इसी प्रकार के महामूल्यवान् बन्धनवाले हैं, तो उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे । इन पूर्वोक्त दोषों के आयतनों का परित्याग करके पात्र ग्रहण करना चाहिए । साधु को चार प्रतिमा पूर्वक पात्रैषणा करनी चाहिए । पहली प्रतिमा यह है कि साधु या साध्वी कल्पनीय पात्र का नामोल्लेख करके उसकी याचना करे, जेसे कि तूम्बे का पात्र, या लकड़ी का पात्र या मिट्टी का पात्र; उस प्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे, या फिर वह स्वयं दे और वह प्रासुक और एषणीय हो तो प्राप्त होने पर उसे ग्रहण करे । दूसरी प्रतिमा है- वह साधु या साध्वी पात्रों को देखकर उनकी याचना करे, जैसे कि गृहपति यावत् कर्मचारिणी से । वह पात्र देखकर पहले ही उसे कहे- क्या मुझे इनमें से एक पात्र दोगे ? जैसे कि तुम्बा, काष्ठ या मिट्टी का पात्र । इस प्रकार के पात्र की याचना करे, या गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे । तीसरी प्रतिमा इस प्रकार है- वह साधु या साध्वी यदि ऐसा पात्र जाने के वह गृहस्थ के द्वारा उपभुक्त है अथवा उसमें भोजन किया जा रहा है, ऐसे पात्र की पूर्ववत् याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे । चौथी प्रतिमा यह है वह साधु या साध्वी किस उज्झितधार्मिक पात्र की याचना करे, जिसे अन्य बहुत-से शाक्यभिक्षु, ब्राह्मण यावत भिखारी तक भी नहीं चाहते, उस प्रकार के पात्र की पूर्ववत् स्वयं याचना करे, अथवा वह गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे । इन चार प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा का ग्रहण... जैसे पिण्डैषणा - अध्ययन में वर्णन है, उसी प्रकार जाने । साधु को इसके द्वारा पात्र - गवेषणा करते देखकर यदि कोई गृहस्थ कहे कि “अभी तो तुम आओ, तुम एक मास यावत् कल या परसों तक आना...” शेष सारा वर्णन वस्त्रैषणा समान जानना । इसी प्रकार यदि कोई गृहस्थ कहे अभी तो तुम जाओ, थोड़ी देर बाद आना, हम तुम्हें एक पात्र देंगे, आदि शेष वर्णन भी वस्त्रैषणा तरह समझ लेना । कदाचित् कोई गृहनायक पात्रान्वेषी साधु को देखकर अपने परिवार के किसी पुरुष या स्त्री को बुलाकर यों कहे "वह पात्र लाओ, हम उस पर तेल, घी, नवनीत या वसा चुपड़कर साधु को देंगे... शेष सारा वर्णन, इसी प्रकार स्नानीय पदार्थ आदि से घिसकर ... इत्यादि वर्णन, तथैव शीतल प्रासुक जल, उष्ण जल से या धोकर... आदि अवशिष्ट समग्र वर्णन, इसी प्रकार कंदादि उसमें से निकाल कर साफ करके... इत्यादि सारा वर्णन भी वस्त्रैषणा समान
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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