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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||११७९| 24 ॥११८२1-27 ॥११८३1-28 उत्तरप्रयपाणि-१२/१२७० (१२७०) रुवेसुजो गिद्धिसुवेइ तिब्बं अकालियं पावद से विणासं रागाउरेजह वा पयंगे आलोयलोले समुयेइ मधु (१२७१) जे यावि दोसं समुवेइ तिब्बं तंसि चिक्खणे से उ उयेइ दुक्खं दुईतदोसेण सएण जंतून किंचिरूवं अवरज्झईसे ॥१८०1-26 (१२७२) एगंतरते रूइरंसिरूवे अतालिसे से कुणई पओसं दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिपई तेण मुणी विरागो ॥११८१।-28 (१२७३) रूवाणुगासाणुगए यजीवे घराघरे हिंसइणेगरुवे चित्तेहिं ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरु किलिट्टे (१२७४) रुवाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे वए विओगे य कहं सुहं से सम्मोगकाले य अतितलामे (१२७५) रूवे अतितेय परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्दुि । अतुहिदोसेणं दुही परस्स लोभादिले आययई अदत्तं ॥११८४1-29 {१२७६) तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतितस्स परिग्गहे य पायामुसं वड्ढइ लोमदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुचईसे ॥११८५130 (१२७७) मोसस्स पच्छायपुरत्यओ य पयोगकाले यदुही दुरंते एवं अदत्ताणि समाययंतो रूवे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥११८६||-31 (१२७८) रूदाणुरत्तस्स नरस्स एवं कुत्तो सुहं होन कयाइ किंचि तत्योदभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तईजस्स कएण दुक्खं 11११८७||-32 (१२७९) एमेव स्वमि गओपओसं उयेइ दुक्खोहपरंपराओ पदुद्वचित्तोयचिणाइ कम्मजं से पुणो होइ दुहं वियागे ||११८८12-33 (१२८०) रूवे विरतो मणुओ विसोगोएएणदुक्खोहपरंपरेण न लिप्पए भवमझे विसंतोजलेण या पोक्खरिणी पलासं ॥११८९।।34 (१९८१) सोयरस सई गहणं वयंतितं रागहेउं तुमणुनमाहु तं दोसहेउं अमणुनमाहु समोयजो तेसुस वीयरागो (१२८२) सदस्स सोयं गहणं वयंति सोयस सई गहणं वयंति रागस्स हेउं समणुनमाहुं दोसस्स हेउं अमणुनमाहु ||११९9136 (१२८३) सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइसे विणासं रागाउरेहरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुयेइ मनु ॥११९२।।37 (१२८४) जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं दुइंतदोसेण सएण जंतून किंचि सई अवरुज्झई से ॥११९३।।-38 (१२८५) एगंतरत्तेरुईरंसि सद्दे अतालिसे से कुणई पओसं दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुनी विरागो (१२८६) सदाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइऽणेगरुवे चित्तेहिं ते परितायेइ वाले पीलेइ अतद्वगुरु किलिडे (१२८७) सद्दाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइऽणेगरुवे वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥११९६॥41 11११९०36 ||११९४||-39 ॥११९५/-40 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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