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मताणपणाणि-10/10 (३२५) अकलेवरसेणि मुस्सिया सिद्धि गोयम लोयं गच्छसि
खेमंच सिवं अनुत्तरं समयं गोयममा पमायए ॥३२॥-36 (१२६) बुद्धि परिनिव्युडे घरे गामगए नगरे व संजए सन्तीमागंच बूहए समयं गोयममा पमायए
॥३२५|| -38 (३२७) बुद्धस्स निसम्म मासियं सुकहियमट्ठपओक्सोहियं रागं दोसंच छिंदिया सिद्धिगई गए गोयमे त्ति खेमि ।। ||३२६॥-97
. इसमं अन्यपणं सक्तं.
इक्कारसमं अज्झयणं-बहुस्सुपपुलं | (१२८) संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो
आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुर्दियं सुणेह मे ||३२७॥ -1 (३२९) जे यावि होइ निविले यद्धे लुद्धे अणिग्गहे अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए
॥३२८11-2 (३३०) अह पंचर्हि ठाणेहिंजेहिं सिक्खा न लब्मई धम्मा कोहा पमाएणं रोगेणालस्सएणय
॥३२९।। -3 (२३) अह अर्हि ठाणेहिं सिक्खासीले ति दुचई अहस्तिो सया दंते न यमम्ममुदाहरे
॥३३०।-4 (३३२) नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले ति वुझाई
||३३0-5 (१५३) अह घोहसहि ठाणेहि वट्टमाणे उ संजए अविणीएचई सो उनिव्याणं धन गच्छइ
॥३३२।। -8 अभिक्खण कोहोहवइ पबंधं च पकुव्बई मेत्तिजमाणो यमइसुयं लब्धूण माई
በዚህ ፡ (१५५) अवि पावपरिक्खेवी अवि मित्तेसु कुप्पई सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे मासइ पावयं
॥३३॥ (१५६) पइण्णवाई दुहिले यद्धे लुद्धे अणिग्गहे असंविमागी अचित्तेअविणीएति बुखाई
॥३३५|| (१३७) अह पत्ररसहिं ठाणेहि सुविणीए त्ति वुचई नीयवत्तो अचवले अमाई अकुऊहले
॥३३६॥ -10 (३२८) अपंच अहिक्खिबई पबंधं च न कुब्बई मेत्तिजमाणो भयई सुयं लधुनमाई
॥३३७||-11 (१३) नय पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण मासई
॥३३८|| -12 (३४०) कलहडमरवञ्जिए बुद्धे अभिजाइए हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए ति बुधई
॥३३९|| -13 (३४१) वसे गुरुकुले निचं जोगवं उवहाणवं
पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लद्भुमरिहई
(१५४)
|३४011-14
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