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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उतरलापणाणि-AVIR ||१५३५||-161 1१५३६1-162 ।।१५३७||-163 ||१५३८||-164 ||१५३९||-186 11१५४०||-168 ५५४१||-167 १५४२||-168 ।।१५४३1-189 (१२) सत्तेव सागराऊ उक्कोसेणवियाहिया तइयाए जहनेणं तिष्णेव सागरोयमा (१५२७) इस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण वियाहिया घउत्थीए जानेणं सत्तेव सागरोदमा (१९२८) सत्तरस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया पंचमाए जहनेणं दस चेव सागरोयमा (१९२९) बावीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया छट्ठीएजहनेणं सतरस सागरोयमा (१३०) तेत्तीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया सतमाएजहनेणं धावीसं सागरोयमा (११३) जावय आउठिई नेरइयाणं वियाहिया सा तेसि काठिई जहनुक्कोसिया भवे (१९३२) अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहत्तं जहनयं विजदम्मि सए काए नेरइयाणं तु अंतरं (१६३३) एएसिवण्णओ चेव गंधओ रसफासओ संठाणदेसओ दावि विहाणाइंसहस्सओ (१९३४) पंचिंदियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया समुच्छिमतिरिक्खाओगभयकंतिया तहा (१९३५) दुविहाते मवेतियिहा जलयरायलयरा तहा। नहयराय बोधव्या तेर्सि भेए सुणेह मे (१९५६) मछाय कच्छमाय गाहाय मगरा तहा सुंसुमारा य बोधव्वा पंचहाजलयराहिया (१५३७) लोएगदेसे तेसवे न सव्वत्व वियाहिया एत्तो कालिविभागं तु तेसि वोच्छं घउन्विहं (१५३८) संतइंपप्पणाईया अपज्जवसिया विय ठिई पडुच साईया सपनवसिया वि य (१५५९) एगाय पुवकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया आउठिई जलयराणं अंतोमुहत्तं जहनिया (१६४०) पुव्वकोडिपुहत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया कायठिईजलयराणं अंतोमुहत्तंजहन्नयं (१५४१) अणन्तकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं विजदम्मि सएकाए जलयरायणं अंतरं (१९४२) एएसिं यण्णओ चेव गंधयोरसफासओ संठाणदेसओ वावि विहाणाईसहस्ससो (१९४३) चउप्पयाय परिसप्पा दुविहाथलयरा भवे चउप्पया चउविहा ते मेकित्तयओ सुण ।।१५४४||-170 ||१५४५||-171 ||१५४६||-172 ||१५४७||-173 ||१५४८||-174 ।।१५४९॥-175 ।।१५५011-176 ||१५५१||-177 ।।१५५२।1-178 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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