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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१५१७||-143 ॥१५१८||-144 11१५१९||-148 11१५२०11-140 ।१५२१11-147 ॥१५२२।।-148 11१५२३||-149 ॥१५२४||-150 ॥१५२५॥-151 बयापर्व (११०८) एएसि वण्णओचेव गंधओ रसफाप्तओ संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो (११०१) घउरिदिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया पछत्तमपञ्जत्ता तेसि भेए सुणेह मे (१९१०) अंधिया पोत्तिया घेव मच्छिया मसगातहा ममरे कीडपयंगेय टिंकुणे कुंकणे तहा (1411) कुक्कुडे सिंगिरीडीय नंदावते य विच्छुए डोले मिंगीरीडीय विरली अछिवेहए (१९१३) अच्छिले माहए अच्छि रोडए विचिते चित्तपत्तए उहिंजलिया जलकारीय नीयया तंबगाइया (१४३) इय चउरिदिया एए ऽणेगहा एवमायओ लोगस्स एगदेसंमितेसवे परिकित्तिा (१६४४) संतइंपपणाईया अपञ्जवसिया विय ठइई पाच साईयासपञ्जवसिया विय (१९१५) छयेव यमासाऊ उक्कोसेण वियाहिया चउरिदियाउटिई अंतोमुहत्तं जहनिया (१९१६) संखिअकालमुक्कोसं अंतोमुहत्तं जहन्नयं घउरिदियकापठिईतं कायं तु अमुंचओ . (१५१७) अनंतकालमुक्कोस अंतोमुहुत्तंजहन्नयं विजदप्पिसए काए अंतरं च विपाहियं (१६४८) एएसिं लवण्णओ चेव गंधओरसफासओ संठाणादेसओ वायि विहाणाई सहस्ससो (११) पंबिंदिया उजे जीवा चउविहा ते वियाहिया नेरड्या तिरिक्खा य मणुया देवाय आहिया (१९२०) नेरइया सतविहा पुटवीसु सत्तसुधवे रयणाभसक्करामा वालुयामा य आहिया (१६२१) पंकामा धुमामा तमा तमतमातहा इनेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया (११२२) लोगस्स एगदेसम्मिते सव्वे उवियाहिया एतोकालिविभागंततेसियोच्छंचउबि (११२१) संतईपप्पणाईया अपञ्जवसियाविय ठिई पडुछ साईया सपञ्जवस्सियाविय (१५२४) सागरोवममेगं तु उक्कोसण वियाहिया पढमाए जहणं दसवाससहस्सिया (१५२५) तिण्णेवसागरा ऊ उक्कोसेणं वियाहिया दोघाए जानेणं एपंतु सागरोवरं 437 ॥१५२६३-182 ॥१५२७||-153 ||१५२८॥-164 ॥१५२९1-156 ||१५३०||-188 ॥१५३१1-157 ||१५३२||-150 ॥१५३३॥-160 ||१५३४||-100 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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