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विनिति - (२५०)
॥२२८||-228
॥२३॥ मा.-23
॥२२९-228
॥२३०11-230
।।२३१||-231
||२३२||-232
॥२३३||-233
।।२३४||-234
॥२३५||-235
(२५०) माईऐं संखडीए उव्यरियं करवंजणाईयं
पउरंदण गिही भणइ इमं देहि पुण्णवा (२५१) तत्य विभागुद्देसियमेवं संमवइ पुव्वमुदि
सीसगणहियट्ठाए तं चैव विभागओ भणइ (१५२) उद्देसियं समुद्देसियं च आएसियं समाएसं
एवं कडे य कम्मे एक्कैक्कि चउक्कओ ओ (२५३) जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देसं
समणाणं आएसं निग्गंधाणं समाएसं (२५४) छिन्नमछिन्नं दुविहं दव्वे खेत्तेय काल मावे य
निप्फइयनिष्फन्नं नायव्यंजं जहि कमाइ (२५५) भत्तुयरियं खलु संखडीऍतदिवसमन्त्रदिवसे या
अंतो बहिं च सव्वं सम्वदिणं देहिं अच्छिन्नं (२५६) देहि इमं मा सेसं अंतो बाहिरगयं वएगयरं
जाव अमुगत्ति वेला अमुगं वेलंच आरम (२५७) दवाईछित्रंपि हुजइ भणई आरओऽविमा देह
तो कप्पइ छिन्नपि हुअच्छित्रकई परिहरंति (२५८) अमुगाणंति व दिज्जउ अमुकाणं मत्ति एत्य उ विभासा
जत्य जईण विसिट्टो निद्देसो परिहरंति रिजा (२५१) संदिस्संतंजोसुणइ कप्पए तस्स सेसए ठवणा
संकलिय साहणं या करति असुएइमा मेरा (२६०) मा एयं देहि इमं पुढे सिद्धमि तं परिहरंति
जंदिनं तं दिनं मा संपइदेहि गेण्हति (२७) रसमायणहे वा मा कुच्छिहिई सुहं व दाहामि
दहिमाई आयतं करेइ कूरं कडं एवं (२६२) मा काहंति अवण्णं परिकहलियं वदिजइ सुरंतु
विपडेण फाणिएण व निद्धेण समं तु वदंति (२५३) एमेवय कम्ममिऽवि उण्हवणे नवरितत्य नाणत्तं
तावियविलीणएणं मोयगचुन्नीपुणकरणं (२६४) अपुगंति पुणो रद्धंदाहमकप्पं तु आरओ कप्प
खेते अंतोबाहि काले सुइव्वं परेव्वं वा (२६५) जंजहव कयंदाहं तं कप्पइआरओ तहा अकयं
कयपाकणिद्देति ठियपि जावंतियं मोत्तुं (२६६) छक्कायनिरणुकंपा जिणपययणबाहिरा बहिष्फोडा
एवं वयंति फोडा लुकविलुककाजह कयोड़ा (२६७) पूईकम्मं दुविहंदव्वे भावे य होइ नायव्यं
दव्बंमि छगणधम्मिय भावंमि य बायरं सुहमं
२३६|1-238
॥२३७||-237
॥२३८11-238
॥२३९||-239
||२४०11-240
२४१11-241
1॥२४२||-242
||२||.-2
॥२४३11-243
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