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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाहा-८६ ॥५४||-33 ५७1-56 (८६) चिक्खाल्लयालसावयसरेणुकंटयतणे बहुजले अ लोगोऽविनेच्छइरहे को नुविसेसो मयंतस्स ॥४९/48 जयणपजणयं च गिही सचित्तमीसे परित्तऽनंतेय नविजाणंति न यासिं अयहपइण्णा अह विसेसो ||५०|49 अविअ जणो मरणमया परिस्समभया व ते विवजेइ ते पुण दयापरिणया मोक्खत्यमिसी परिहरंति 11498-50 अविसिमिविजोगंमिबाहिरे होइ विहुरया इहरा सुद्धस्स उसंपत्ती अफलाजं देसिआ सपए ॥५२||-51 एक्कमिवि पाणिवहमिदेसिअंसुमहदंतरं समए एपेव निचरफला परिणामयसा बहुविहीआ ॥५३॥-52 (११) जेजत्तिआ य हेऊ मवस्स ते चेव तत्तिआ मुक्खे गणणाईया लोगा दुण्हदि पुण्णा भवे तुल्ला (१२) इरिआवहमाईआजे चेव हवंति कम्मबंधाय अजयाणं ते वेव उजयाण निव्वाणगमणाय ॥५५॥-64 (९३) एगंतेण निसेहो जोगेसुन देसिओ विही वावि दलियं पप्प निसेहो होज विही वा जहा रोगे ॥५६||-65 जंमि निसेविजंते अइआरोहोज कस्सइ कयाइ तेणेव य तस्स पुणो कयाइ सोही हवोजाहि अनुमित्तोऽविन कस्सइबंधो पावत्युपचओ भणिओ तहविय जयंति जइणो परिणामविसोहिमिच्छंता जो पुण हिंसायपणेसु वट्टइ तस्स नहुपरीणामो दुबोन यतं लिंग होइ विसुद्धस्स जोगस्स ५९-58 तम्हा सया विसुद्धं परिणामंइच्छया सुविहिएणं हिंसाययणा सव्वे परिहरियव्वा पयत्तेणं ॥६०-58 (९८) बजेमित्तिपरिणओ संपत्तीए विमुचई वेरा अविहंतोऽविन मुघइ किलिभावोत्ति वातस्स ॥६911-60 पढपविइया गिलाणे तइए सण्णी चउत्य साहमी पंचमियंमि य वसही छठे ठाणडिओ होइ ॥६२-81 (१००) एहिएपारत्तगणा दुनिय पुच्छादुवे य साहम्मी तत्येक्केका दुबिहा चउहा जयणा दुहेक्केका ॥३॥1-82 (१०१) पउिदारगाहा इहलोइआ पवित्ती पासणया तेसि संखडी सड्ढो परलोइआ गिलाणे चेइय वाई य पत्रिणीए ॥६४||-83 (१०२) अविहीपुच्छा अत्यित्य संजया नत्यि तत्यसमणीओ समणीसु अता नत्थी संका य किसोरवडवाए ॥६५-84 (१०३) सद्दढेसुचरिअकामो संकाधारीय होइ सड्ढीसुं चेइयघरं व नत्यिह तम्हा उ विहीइ पुछेजा ॥६६/-86 |1५८||-57 For Private And Personal Use Only
SR No.009770
Book TitleAgam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages78
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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