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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ ७१॥ ॥७२॥ ॥७३॥ 1७४॥ |७५॥ ॥७ ॥ Tক্তি) ||७८॥ महानिसीई - ५/-१७६१ (७६१) जत्य य गोयम बहु विहविकप्प-कल्लोल-चंचल-मणाणं अाणमणुडिइ भणियंतं केरिसंगछं (७६२) जत्थेक्कंग-सरीरो साहू अह साहूणि व्व हत्य-सया उड्डंगच्छेअ बहिं गोयम गच्छम्मि का मेरा (७६३) जत्य य अजाहि समं संलावुल्लाव-माइ-ववहारं मोत्तुं धम्मुवएसं गोयमतं केरिसं गच्छं (७६४) मयवमणियत्त-विहारं नियय-विहार नतावसाहुणं कारण नीयावासंजो सेवेतस्स का पत्ता (७६५) निम्मम-निरहंकारे उजुत्ते नाण-दंसण-चरित्ते सयलारम-विमुक्के अप्पडिबद्ध सन्देहे वि (७६६) आयारमायरंते एगक्खेत्तेवि गोयमा मुणिणो वास-सयं पि वसंते गीयत्येऽऽराहगे पणिए (७६७) जत्य समुद्देस काले साहूणं मंडलीए अजाओ गोयम ठवंति पादे इत्यी-रजंनतं गच्छं (७६८) जत्य यहत्य-सए वि य रयणीचारं चउण्हमूणाओ उड्ढं दसण्णमसई करति अनाउंनोतयं गच्छं (७६१) अववाएणं विकारण-यसेण अशा चउण्हमूणाओ गाऊयमविपरिसर्कतिजत्थतं केरिसंगच्छं ॥७९॥ (७७०) जत्य य गोयम साहू अजाहिं समं पहम्मि अद्णा अववाएण विगच्छेज तत्व गच्छम्मि का मेरा 11८011 (७७१) जत्ययति-सद्धि-भेयं चक्खरागण दीरणिं साह अजाओ निरिक्खेज्जा तं गोयमा कैरिसंगछं (७७२) जत्य य अञ्जालद्धं पडिग्गहमादि-विविहमुवगरणं परिमुनइ साहहिं तंगोयमा केरिसं गच्छं ||८२॥ (७७३) अइदुलहं भेसअंबल-बुद्धि-विवद्धणं पि पुट्टिकर अज्जा लद्धं मुझइ का मेरा तत्य गच्छम्भि (७७४) सोऊण गई सुकुमालियाए तहससग-भसग भइणीए तावन बीससियवं सेयट्ठी धम्मिओ जाव (७७५) दढचारित्तमोत्तुं आयरियं मयहरं च गुण-रासिं अञ्जा अज्झावेइ तं अणगारंन तंगच्छं (७७५) घण-गज्जिय हय-कुहुकुहुय-विजु-दुगेग्न-मूल-हिययाओ होजा वावारियाओ इत्थी अंनतं गच्छं ॥८६॥ (७७७) पञ्चक्खा सुयदेवी तव-लद्धीए सुराहिव-नुया वि जत्य रिएज्जेकजा इत्यी-रझंनतं गच्छं (७७८) गोयमपंच महव्यय गुत्तीणं तिण्डं पंच-समईणं दस-विह-धम्मस्सेक्कं कहवि खलिजइ नतं गच्छं ||८१ ॥८३॥ ||८४॥ ॥८ ॥ ||८७ 11८८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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