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महानिसीहं ५ //७२६
(७२६) गुरुणा खर- फरुसाणिदुङ-निदुर-गिराए सयहुतं मणिरे नो डिसूरि ति जत्थ सीसे तयं गच्छं (७२७) तवसा अर्चित-उप्पण्ण-लद्धि-साइसय-रिद्धि-कलिए वि जत्य न हीलेति गुरुं सीसे तं गोयमा गच्छं
( ७२८) तेसद्धि-ति-सय-पावाउयाण विजया विद्वत्त- जस-पुंजे जय न हीलेति गुरुं सीसे तं गोयमा गच्छं ( ७२१) जत्याखलियममिलियं अव्वाइद्धं पयक्खर विसुद्धं विणओवहाण पुव्वं दुवाल संगं पि सुय-नाणं (७३० ) गुरु- चलण- मत्ति-भर-निब्भरेक्क परिओस-लद्धमालावे अज्झीयंति सुसीसा एगग्गमणा स गोयमा गच्छं (७३१) स-गिलाण - सेह-हालाउलस्स गच्छस्स दसविहं विहिणा कीर वेयावचं गुरु- आणत्तीए तं गच्छं
( ७३२) दस-विह- सामायारी जत्यट्ठिए भव्व-सत्त-संघाए सिज्झति य बुज्झति य न य खंडिज्जइ तयं गच्छे (७३३) इच्छा मिच्छा तहक्कारो आवस्सिया य निसीहिया आउंछणाय पडिपुच्छा छंदणा य निमंतणा उवसंपयाय काले सामायारी भवे दस-विहाउ (७३४) जत्य य जिट्ठ- कणिट्ठो जाणिज जेङ- विनय - बहुमाणं दिवसेणं वि जो जेडो नो हीलिज तयं गच्छं
( ७३५) जत्य य अज्जा कप्पं पाण-च्चाए वि रोरव-दुब्मिक्खे न य परिभुज सहसा गोयम गच्छं तयं भणियं
( ७३६) जत्य य अजाहि समं घेरा वि न उल्लवंति नय-दसणा न य निज्झायंतित्थी - अंगोबंगाई तं गच्छं (७३७) जत्य य संणिहि उक्खड आहड-मादीण नाम- गहणे वि पूर्व-कम्मामीए आउत्ता कप्प तिप्पंति
( ७३८ ) जत्थ य पच्चंगुष्मड-दुज्जइ-जोव्वण-मरट्ट-दप्पेणं वाहिता विमुनी निक्खति तिलोत्तमं पि तं गच्छं ( ७३९) वाया- मित्तेण वि जत्य भट्ट - सीलस्स निग्गहं विहिणा बहु-लद्धि - जुयसाची कीरइ गुरुणा तयं गच्छं
(७४०) मउए निहुय - सहावे हास- दव- बज्रिए विगह मुक्के असमंजसमकरेंते गोयर-भूमट्ठ विहरंति
( ७४१) मुणिणो नाणाभिग्गह- दुक्कर-पच्छित्तमनुचरंताणं जायइ चित्त चमक्कं देविंदाणं पि तं गच्छं (७४२ ) जत्य य वंदण-पडिकूकमणमाइ-मंडलि विहाणनिउण णू गुरुणो अखलिय-सीले सययं कडुग्ग-तव-निरए
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