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पमानिसीई.911१०
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(९०) मनसा विखंडिए सीले पाणे न धरापि केवली
एवं वइ-काय-जोगेणं सीले रक्खे अहं केवली एवमादी अनादीया कालाओ नंते मुणी केइ आलोयणा सिद्धे पच्छिता केइ गोयमा खंता दंता विमुत्ताय जिइंदी सच्च-भासियो
छक्काय-समारंभाओ विरते तिविहेण उ (१३) ति-दंडासव-विरया य इत्थि-कहा-संग-वञ्जिया
इत्थी-संलाव-विरया य अंगोवंग-ऽनिरिक्खणा (९४) निम्ममत्ता सरीरे वि अप्पडिबद्धा महायसा
भीया च्छि-च्छिन्गब्भवसहीणं बहु-दुक्खाब मवाउ तहा (१५) तो एरिसेण मावणं दायव्या आलोयणा
पछित्तं पियकायव्यं तहाजहा चेवेएहिं कयं (१६) नपुणोतहा आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई
जह आलोएमाणाणांचेव-संसार-वुड्ढी भवे अनंते ऽणाइकालाओ अत्त-कम्मेहिं दुम्मई
बहुविकल्प-कल्लोले आलोएंतो बीअहोगए (९८) गोयम केसिंचि नामाइं साहिमोतं निबोधय
जे साऽऽलोयण-पच्छित्ते भाव-दोसेक्क कलुसिए (११) ससल्ले घोर-महं दुक्खं दुरहियासंसु-दूसहं
अनुहवंति वि चिट्ठति पाव-कम्मे नराहमे (१००) गुरुगा संजमे नाम सातू निद्धंधसे तहा।
दिहि-वाया-कुसीले य मण-कुसीले तहेवय (१०१) सुहुमालोयगेतह य परववएसालोयगे तहा
किं किंचालोयगे तह यन किंचालोयगे तहा (१०२) अकयालोयणे चेवजन-रंजवणे तहा
नाहं काहामि पच्छित्तंछम्मालोयणमेव य (१०३) माया-इंम-पवंचीय पुर-कड-तव-धरणं कहे
पछित्तं नत्थि मे किंचिन कयालोयणु घरे (१०४) आसन्नालोयणक्खाई लहु-लहु-पच्छित्त-जायगे
अम्हानालोइयं चिढे मुहबंधालोयगे तहा (१०५) गुरु-पच्छिताऽहमसक्के य गिलाणालंवणं कहे
अडालोयगे साहू सुग्णाऽसुण्णी तहेय य (१०६) निच्छिण्णे विय पच्छिते न काहं बुढिजायगे
रंजवण-मेत्तलोगाणं याया-पच्छित्ते तहा। (१०७) पडिवजण-पच्छिते चिर-याल-पवेसगेतहा
अणणुडिय-पायच्छिते अनुभणियऽण्णहाऽऽयो तहा
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