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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पमानिसीई.911१० ॥८५॥ il CEI (१२) || ७|| 1200 ।।८९॥ ॥१०॥ ॥९ ॥ ॥१२॥ ॥१३॥ (९०) मनसा विखंडिए सीले पाणे न धरापि केवली एवं वइ-काय-जोगेणं सीले रक्खे अहं केवली एवमादी अनादीया कालाओ नंते मुणी केइ आलोयणा सिद्धे पच्छिता केइ गोयमा खंता दंता विमुत्ताय जिइंदी सच्च-भासियो छक्काय-समारंभाओ विरते तिविहेण उ (१३) ति-दंडासव-विरया य इत्थि-कहा-संग-वञ्जिया इत्थी-संलाव-विरया य अंगोवंग-ऽनिरिक्खणा (९४) निम्ममत्ता सरीरे वि अप्पडिबद्धा महायसा भीया च्छि-च्छिन्गब्भवसहीणं बहु-दुक्खाब मवाउ तहा (१५) तो एरिसेण मावणं दायव्या आलोयणा पछित्तं पियकायव्यं तहाजहा चेवेएहिं कयं (१६) नपुणोतहा आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई जह आलोएमाणाणांचेव-संसार-वुड्ढी भवे अनंते ऽणाइकालाओ अत्त-कम्मेहिं दुम्मई बहुविकल्प-कल्लोले आलोएंतो बीअहोगए (९८) गोयम केसिंचि नामाइं साहिमोतं निबोधय जे साऽऽलोयण-पच्छित्ते भाव-दोसेक्क कलुसिए (११) ससल्ले घोर-महं दुक्खं दुरहियासंसु-दूसहं अनुहवंति वि चिट्ठति पाव-कम्मे नराहमे (१००) गुरुगा संजमे नाम सातू निद्धंधसे तहा। दिहि-वाया-कुसीले य मण-कुसीले तहेवय (१०१) सुहुमालोयगेतह य परववएसालोयगे तहा किं किंचालोयगे तह यन किंचालोयगे तहा (१०२) अकयालोयणे चेवजन-रंजवणे तहा नाहं काहामि पच्छित्तंछम्मालोयणमेव य (१०३) माया-इंम-पवंचीय पुर-कड-तव-धरणं कहे पछित्तं नत्थि मे किंचिन कयालोयणु घरे (१०४) आसन्नालोयणक्खाई लहु-लहु-पच्छित्त-जायगे अम्हानालोइयं चिढे मुहबंधालोयगे तहा (१०५) गुरु-पच्छिताऽहमसक्के य गिलाणालंवणं कहे अडालोयगे साहू सुग्णाऽसुण्णी तहेय य (१०६) निच्छिण्णे विय पच्छिते न काहं बुढिजायगे रंजवण-मेत्तलोगाणं याया-पच्छित्ते तहा। (१०७) पडिवजण-पच्छिते चिर-याल-पवेसगेतहा अणणुडिय-पायच्छिते अनुभणियऽण्णहाऽऽयो तहा ॥१४॥ ॥१५॥ ॥९ ॥ ॥९७॥ ||९८॥ ॥९९॥ 19001 ॥१०॥ ॥१०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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