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अगायणं-८ : विइया चूलिया
जे णं कप्पसमत्तीए विझा अभिमंतिऊणं विग्यविणाइगा आराहंति सूरे संगामे पविसंतो अपराजिओ होइ जिगकप्प-समत्तीए विजा अभिमंतिऊण खेमवहणी मंगलवहणी भवति । (१५२८) चत्तारि सहस्साई पंचसयाओ तहेव चत्तारि सिलोगा विय महानिसीहम्मि पाएण
अदर्म अन्यपणं रिहया चलिया सपत्तं.
॥३०॥
३९ महानिसीह - समत्तं
छटुं छेयसुत्तं समत्तं
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