________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥४९॥
॥५१॥
॥५२॥
॥५३॥
महानिसीहं - 91-५४ नवरं सुहासुहं सम्मं सिविणगं समदधारए जंतत्य प्तिविणगे पासे तारिसगं तंतहा पवे जइणं सुंदरगं पासे सिमिणगं तो इभ महा परपत्य-तत्त-सारत्यं सल्लद्धरणं सुणेत्तुणं
||५|| देजा आलोयणं सुद्धं अदु-मय-ठाण-विरहिओ रंजेंतो धम्मतित्ययरे सिद्धे लोगगग-संठिए आलोएताण नीसल्लं सामनेण पुणो विय वंदित्ता चेइए साहू विहि-पुण खमावए खामेत्ता पाव-सलस्स निम्मूलुद्धरणं पुणो करेजा विहि-पुच्चेणं रंजेतो ससुरासुरं जगं एवं होऊण नीसल्लो सब्य-भावेण पुणरवि विहि-पुव्वं चेइएवंदे खामे साहम्मिए तहा
11५४ा नवरं जेण समं युत्यो जेहिं सद्धिं पविहरिओ खर-फरुसं चोइओ जेहिं सयं वा जोय चोइओ। ॥५५॥ जो विय कजमक वा मणिओ खर-फरुस-निगुरं पडिमणियं जेण वी किंचि सो जइ जीवइ जई मओ खामेयव्यो सव्व-भावेणंजीवंतो जत्य चिट्ठइ तत्य गंतूण विनएण मओ वी साहुसक्खियं एवं खापण-मरिसामणं काउं तिहुयणस्स वि मावओ सुद्धो मण-वइ-काएहिं एवं घोसेज निच्छिओ खामेमि अहंसव्वे सव्वे जीवा खपतु मे मित्ती मे सब्वभूएसंचरं मझंन केणई
॥५९॥ खमापि हंपि सब्वेसि सव्व-भावेण सव्यहा भवभवेसु विजंतूण वाया-मणसा य कम्मुणा ॥६॥ एवं घोसेत्तु बंदिज्जा चेइय-साहू विहीय उ गुरुस्सावि विही-पुव्वं खामण-मरिसामणं करे खमावेत्तु गुरुं सम्मंताण-महिमं स-सत्तिओ काऊणं वंदिऊणं च विहि-पुब्वेण पुणो विय पमत्य-तत्त-सारत्यं सल्लुद्धरणमिमं सुणे सुणित्ता तहमालोएजह आलोयंतो चेव उप्पए केवलं नाणं ॥३॥ दिन्नेरिस-भावत्येहिं नीसला आलोयणा जेणालोयमाणाणं चेव उप्पण्णं तस्येव केवलं केसिं चि साहिमो नामे महासत्ताण गोयमा जेहिं भावणालोययंतेहिं केवलनाणमुष्पाइयं हाहादुटु-कडे साहू हा हा दुटु विचिंतिरे हा हा दुस-पाणिरे साहू हा हा दुष्मणुमते
॥५७
॥५८॥
15910
(१७)
IIE२॥
(६८)
(७१)
॥६
॥
For Private And Personal Use Only