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अयणं-८ : बिइया धूलिया
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सीलाहिट्ठियत्ताए तियसाणं पि अलंयणिज्जाए तस्स भारतीए जाए य निब्बल- देहे तओ य णं घस त्ति मुच्छिऊणं निघेट्टे निवडिए धरणिबट्टे से कुमारे एयावसरम्मि उ गोयमा तेणं नरिंदाहमेणं गूढहियय-मायाविणा बुत्ते धीरे सव्वत्थावी समत्ये सव्वलोय समंत-धीरे भीरू वियक्खणे मुक्खे सूरे कायरे चउरे चाणकूके बहुपबंच भरिए संधिविग्गहिए निउत्ते छइले पुरिसे जहा णं भो भो तुरियं रायहाणीए जिंद-नील-ससि सूरकंतादीए पवर-मणि-रयण-रासीए हेमज्जुण-तवणीय जंबूनयसुवण्ण-भारलकखाणं किं बहुणा विसुद्धबहुजन मोत्तियं विद्दुमखारि-लक्ख-पडिपुत्रस्स जं कोसस्स चाउरंगस्स बलस्स विसेसओ णं तस्स सुगविय नाम - गहणस्स पुरिस-सीहस्स सीलसुद्धस्स कुमारवस्से ति पउत्तिं आणेह जेमाहं निव्युओ भवेज्जा ताहे नरवइणो पणामं काळणं गोयमा गए ते निउत्तपुरिसे जाव णं तुरियं चल-घवल- जइण-कम-पवण- वेगेहिं णं आरुलहिऊणं जब-तुरंगमेहिं निउज - गिरिकंदरुद्देस पइरिक्काओ खणेण पत्ते रायहाणि दिट्ठो य तेहिं वामदाहिणभुया-पल्लवेहिं वयणं सिरोरुदहे विलुपमाणी कुमारो तस्स य पुरओ सुवन्नाभरण - नेवच्छादस- दिसासु उज्जीयमाणी जय जय मंगल महलारयहरण- वावडोभयकर-कमल-विरइयंजली देवया तं च दहूणं विम्हिय भूयमणे लिप्प-कम्म निम्मविए एयावसरम्मि उ गोयना सहरिस- रोमंच - कंचुपुलइयसरीराए नमो अरहंताणं ति समुञ्चरिऊणं भणिरे गयणट्टियाए पवयण देवयाए से कुमारे तं जहा | २-१ |
(१४९९) जो दलइ मुट्ठि-पहरेहि मंदरं धरइ करयले वसुहं सव्वोदहीण वि जलं आयरिसइ एक्क पोट्टेणं
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(१५०० ) टाले सग्गाओ हरिं कुणइ सिवं तिहुयणस्स विखणेणं अक्खंडिय सीलाणं कुद्धो वि न सो पहुप्पेज्जा
( १५०१ ) अहवा सो चिय जाओ गणिजए तिहुयणस्स वि स बंदो पुरिसो वि महिलिया वा कुलुग्गओ जो न खंडए सीलं
( १५०२) परम पवित्तं सप्पुरिस-सेवियं सयल-पाव-निम्महणं सव्युत्तम सुक्ख - निर्हि सत्तरसविहं जयइ सीलं
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(१५०३) ति भाणिऊणं गोयमा झत्ति मुक्का कुमारस्सोवरिं कुसुमवुर्हि पवयण देवयाए पुणो विभणिउमादत्ता देवया तं जहा । २-२ |
(१५०४) देवस्स देंती दोसे पयंचिया अत्तणो स-कम्मे हिं न गुणेसु ठवितऽष्पं मुहाई मुद्धाए जोएंति (१५०५) मज्झत्थभाववत्ती सम-दरिसी सव्व-लोय-वीसासो निक्खवय- परियत्तं दिब्बो न करेइ तं ढोए ( १५०६ ) ता बुज्झिऊण सव्दुत्तमं जणा सील-गुण-महिड्ढीयं तामसभावं चिचा कुमार-पय-पंकयं नमह
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(१५०७) त्ति भाणिऊणं अद्दंसणं गया देवया इति ते छइल - पुरिसे लहुं च गंतूण साहियं तेहिं नरवइणो तओ आगओ बहु-विकप्प- कल्लोल - मालाहि णं आउरिज्माण-हियय-सागरी हरिसविसाय-वसेहिं भीऊडुपायातत्य चकिर - हियओ सणियं गुज्झ सुरंग - खडक्किया- दारेणं कंपंत
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।।१४।।
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॥१७॥
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