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मानिस ७ //१३५७
(१३५७) भमिहामि भट्ट - सम्मत्त-नाण-चारित तद्ध-थरपोओ कालं अनोर-पारं अंतं दुक्खीणमलंभतो
(१३६८) ता कइया सो दियहो जत्था - हं सत्तु-मित्त सम- पक्खो नीसंग विहरिस्सं सुह-झाण-नीरंतरो पुणोऽभव (१३६९) एवं चिर चिंतियाभिमुह-मनोरहोरु संपत्ति- हरिस- समुल्लसिओ भक्ति-पर-निष्परोणय- रोमंच - उक्कंच पुलय- अंगो (१३७०) सीलिंग सहस्स अट्ठारसह धरणे समोत्यय-धो छत्तीसायारुक्कंठ-निट्टियासेस-मिच्छत्तो
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॥१२॥
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॥१४॥
(१३७१ ) पडिवचे पव्य विमुक्क-मय-मान-मच्छरामरिसो निम्म निरहंकारो विहिणेवं गोयमा विहरे (१३७२) विहग इवापडिबद्धो उत्तो नाणं- दंसण-चरिते नीसंगो घोर परीसहोवसग्गाई पजिणंतो ( १३७३ ) उग्गाभिग्गह- पडिमाइ राग-दोसेहिं दूरतर मुक्ंको रोद्दट्टजाण - विवजिओ य विगहासु य असत्तो (१३७४) जो चंदनेन बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे संथुइ जो अ निंदइ सम-भावो हुज दुण्हं पि
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( १३७५) एवं अणिगूहिय बल - विरिय- पुरिसक्कार परक्कमो सम-तण-मणि-लिड्डुकंचणोवेक्को परिचत्त - कलत्त पुत्त सुहि-सयण मित्त-बंधद-धण-पन्नं सुवण्ण-हिरण्ण-मणीरयण-सार-भंडारो अनंत-परम-वेरग्ग वासणाजणिय-पवर - सुहज्झवसाय-परम-धम्म-सद्धा-परो अकिलिट्ठ-निक्कलुस-अदीन - माणसो य वय-नियम-नाण-चरित्त तयाइ सयल-भुवणेक्क-मंगलअहिंसा-लक्खण-संताइ-दस-विह धम्माणुट्ठाणेक्कंत-बद्ध-लक्खो सव्यावरसग तक्काल-करणसज्झायाणं आउत्तो संखाईय-अणेग-कसिण-संजम-पएसु अविखलिओ संजय - विरय-पडिहयपञ्चखाय- पाव - कम्मो अनियाणी माया मोस- वियशिओ साहू वा साहूणी वा एवं गुण-कलिओ जड़ कह वि पमाय-दोसेणं असई कर्हिचि कत्थइ याचा इ वा मणसा इ वा ति करण-विसुद्धीए सव्वभाव भावंतरेहिं चेय संजममायरमाणो असंजमेणं छलेज्ञा तस्स णं विसोहि पयं पायच्छित्तमेव तेणं पायच्छित्तेणं गोयमा तस्स विसुद्धि उवदिसिजा न अन्नह त्ति तत्थ णं जेसुं जेसुं ठाणेसुं जत्य जत्थ जावइयं च्छित्तं तमेव निलंकियं भन्नइ से भयवं के णं अद्वेणं भण्णइ जहा णं तं एव निलंकिय भण्णइ गोयमा अनंतरानंतर कूकमेणं इणमो पच्छित सुत्तं अनेग- गुणगणाइण्णस्स दढ़-च्चयचरितस्स एगतेण जोगस्स एव विवक्खिए पएसे चउक्कण्णं पन्नवेयव्दं नो छक्कण्णं तहा य - जस्स जावइयेणं पायच्छित्तेणं परम-विसोही भवेखा तं तस्स णं अनुयट्टणा-विरहिएणं धम्मेक्क-रसिएहिं वयणेहिं जह-ट्ठियं अनुणाहियं तावाइयं चैव पायच्छित्तं पयच्छेजा एएणं अट्ठेणं एवं बुच्चइ जहा णं गोयमा तमेव निकियं पायच्छित्तं मण्णइ ॥११
(१३७८) से मययं कइविहं पायच्छित्तं उचट्टं गोयमा दसविहं पायच्छितं उचट्टं तं च अणेगहा जाव णं पारंचिए ॥२॥
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।।१७।।
(१३७७) से भयवं केवइयं कालं जाव इमल्स णं पच्छित सुत्तस्साणुट्ठाणं वट्टिही गोयमा जावणं कक्की नाम रायाणे निहणं गच्छिय एक्क - जियाययण मंडियं बसुहं सिरिप्पये अणगारे