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(११७२) अहया चितिजई दुक्खं कीरईपुण सुहेणय
ताजो मणसा वि कुसीलो सकुसीलो सव्य-कज्जेसु (११७३) ताजं एत्यं इमं खलियं सहसा तुडि-बसेण
आगयं तस्स पच्छित्तंआलोइत्ता लहुंचरं (११७४) सईण सील-वंताणं मन्झे पढमा महाऽऽरिया
धुरम्भि दियए रेहा एवं सग्गे विधूसई (१९७५) तहाय पाय धूली मे सव्यो वि यंदए जणो
__ जगा किल सुज्झिए मिमीए इति पसिद्धाए अहं जगे (११७६) ताजइआलोयणं देमिता एवं पयडी-भवे
मम भायरो पिया-माया जाणित्ता हुंति दुखिए (११७७) अहवा कहविपमाएगंज मे मणसा विचिंतिय
तमालोइयं नजर मझवग्गस्स को दुहो (११७८) जावेयं चिंतिउं गच्छेता बुखंतीए कंटगं
फुडियंठसत्ति पायतले ता निसण्णा पडुल्लिया (११७१) चिंतेइ हो एत्य जम्मम्मि मज्झपायस्मिकंटगं
नकयाइ खुतं ता किं संपयं एत्थ होहिइ (१९८०) अहवा मुणियं तु परमत्य-जाणगे अनुमती कया
संघ{तीए चिडुल्लीए सील तेण विराहियं (110) मूयंध-काण-बहिरं पि कुटुंसिडि विडि-विडिवडं
जावसीलंन खंडेइ ताव देवेहिं युव्यइ (११८२) कंटगं चेव पाए मे खुत्तं आगासागासियं
एएणं जं अहं चुक्कातं मे लामं महतियं (११८३) सत्त वि साहाउ पायाले इत्यी जामणसा विय
सील खंडेइ सा नेइकहियंजपणीए मे इमं (११८४) ताजं न निवडई वगं पंसु-विट्ठी ममोवरि
सय-सक्कान फुट्टइ या हिययं तं महच्छेरगं (१७८५) नवरंजई एयमालोयंता लोगो एत्य चिंतिही
जहा-अमुगस्स धूयाए इयं मणसा अज्झवसियं (१८५) तंनंतह यि पओगेणं परववएसेणालोइमो
जहा-जइ कोइ एवं अन्झवसई पछितंतस्स होइ किं (११८७) तंचिय सोऊण काहामि तवेणं तस्य कारणं
जंपुण भयवयाऽऽइव धोरं अभ्रत-निवरं (११८८) तंतवं सील-चारित्तं तारिसंजाव नो कयं
तिविहं तिविहेण नीसलं तायपावनखीयए (१९८१) अहसा पर-ववएसेणं आलोइता तवंचरे
पायच्छित्तं निमितेणं पनासं संवच्छरे
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