SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Br www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२४०) अहवावि होज छक्कं निगमो संगाहिओ असंगाही संगाहितो संग तू ववहार पविट्ठऽसंगाही (२२४१) तम्हा उ संगहणओ दवहारी घेष होइ उज्जुसुओ सोय समभिरूढो एवंभूओ य छक्क नया (२२४२) एते पुण सव्वेऽवी दुग तिग पण छकूक मेलिया संता सोलस नयंतराई समासओ होति एयाई (२२४३) जइ कुणइ दजवियकप्पं एतेहिं नयंतरेहिं तु विसुद्धं करणट्ठाण पसत्या ते खलु होंती मुणेयब्वा (२२४४) अकरेंते अपसत्या कप्पे सनयंतरे समक्खाओ कप्पे ठितमठिते पुण वोच्छामऽहुणा समासेणं (२२४५) संघयणवजिओदि हुदुक्खक्खयकारी पणग जाओ संघणयसमग्गस्सवि अजाय चउरो अमोक्खाए (२२४६) पंच उ महव्वयाई पणगं तेसि तु जो करे पयत्तं जाओ जो निप्फओ अजाओ नियमा अनिष्फाण्णी (२२४७) ठितमट्ठितै य कप्पे संघयणेणावि जो विद्वीणो उ सो कुणा दुक्खमोक्खं जो पुण न करे पयत्तं तु (२२४८) पंचसु महव्वएसुं संघयणेणं तु जइवि संपन्नो सो चउगइसंसारे भमई न व पावई मोक्खं (२२४९) अहुणा उठाणकम्पो उद्धाद्वाणाइओ मुणेयच्चो ठियकप्पसंजयस्सविऽणुण्णाओ अट्ठितस्सावि ( २२५०) जिणकम्पोवि उठितकप्पे अडिए यऽणुण्णाओ एमेव थेरकप्पी ठितमठिते होतिऽणुणाओ (२२५१) पशूवासणकप्पो सुत्ते कप्पो तहा चरिते य अज्झयणुद्देसम्मिय कप्पो तह वायणाए य (२२५२) कप्पो पडिच्छणाए परियऽणुपेहणाऍ कप्पो य ठियमट्ठिएस दोस्रुवि एते सव्वे भवे कम्पे ( २२५३) जातमजाओ अहुणा दोण्णिवि एते समं तु वच्चंति जायं निष्पन्नंतिय एग होइ नायव्वं (२२५४) जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा छिण्णा अजाते करणम्मि उ अत्रतरीतं गतीं जाइ (२२५५) जायं खलु निष्फनं सुत्तेणऽत्येण तदुभएणं च चरणं य संजुत्तं वइरित्तं होइ अजातं ( २२५६) जातकरणेण छित्रा नरगतिरिक्खा गती उ क्षेत्रि भवे अहवा तिहा उ छित्रा नरगतिरिक्खा मणुस्सगती ( २२५७) देवेसुवि तिण्णि गती छित्रा वैमाणिएसु उववत्ती चउसुवि गतीसु गच्छति अन्नतरि अज्ञातकरणेणं For Private And Personal Use Only पंचकपो- (२२४०) ॥१२४० ॥ ||२२४१॥ ||२२४२॥ ॥२२४३ ॥ !२२४४॥ ||२२४५ ॥ ||२२४६॥ ॥२२४७॥ ||२२४८॥ ॥२२४९ ॥ ॥२२५०॥ ॥२२५१॥ ॥२२५२॥ ।।२२५३।। ॥२२५४॥ ॥२२५५॥ ॥२२५६॥ ॥२२५७॥
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy