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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ पंचकप्पो - (१२०४) ।२२०४॥ २२०५॥ ॥२२०६॥ ॥२२०७* ||२२०८।। ॥२२०९ ||२२१०॥ |२१११॥ 1॥२२१२॥ (२२०४) सदहणाकप्पो या आचरणा चेव दो पहाणतरा अहया सहाण छिय सद्दहिउंजो न आयरति (२२०५) भइमणुपालणत्तिय सहहिऊणंति न तरई कोई अनुपालेउं अशा तम्हा खलु सोन पव्यावे (२२०६) निव्विसणकप्पो एसो एत्तो वोच्छामि अंतराकप्प संखेवपिडियत्यं गुरुवएसंजहाकपसो (२२०७) पंचट्ठाणमसंखा बारसगंगेव तिण्णवि तियाणं अज्झयत्यनाणकरणयाएँ सोअंतराकप्पो (२२०८) सामादिसंजतादी पंचह चरणंतु तेसि एककेक्कं संजमठाणमसंखा एक्केके तत्य ठाणम्मि (२२०९) होति अनंता चारित्तपञ्जया ताणऽसंखगुणियाणि एक्कं संजमकंडग कंडगसंखा यछट्ठाणा (२२१०) छट्ठाणाऽसंखेशा संजमसेदी उ होइ बोद्धब्बा सामादिछेदसंजमठाणा गंतुं असंखेना (१२१) परिहरिसंजमठाणा ताहे लग्गति तेऽविउ असंखा गंतूण होति छिना ताहे ततोपुणो परओ (२३१२) वड्दति जा असंखा सामाइयछेदसंजमाणा सामादिछेदठाणा ताहे छिन्ना भवंतीउ (२२१३) तो सुहमरागठाणा तेऽवि असंखेज गंतु बोछिना तस्स अपच्छिमठाणं अनंतगुणवटियं नियमा (२२१४) एक्कं परमविसुद्ध होइ अहक्खायसंजमठ्ठाणं पंचमसंखति गतं बारसगं बार पडिमाओ (२३१५) सुद्धपरिहार चउरोअनुपरिहारीवि नवम कप्पठितो एते तित्रि तिया खलु एतेसिंएक्कमेक्कस्स (१२:६) अंतरसंजमठाणा होति असंखा उ तेसि सव्वेसि होइ दुविहाउसोही करणे अज्झत्थओचेय (२२१७) तादोविय कायव्वा नाणद्वाए सुतोवउत्तेण एसो अंतरकप्पोनयकप्पमियाणि वोच्छामि (२२१८) सव्वेसिपि नयाणं आदेसणयंतरंपि सट्टाणे एस नयंतरकप्पो पुव्यगतविसालमादीसु (२२११) सव्वेवि नेगमादी आदिस्सति जो नयो उ साऽऽदेसो नयतो अनोवि नओनयंतरं होइ नायब्वं (२२२०) सटाणे सट्टाणे सव्ये बलिया हवंति सब्बिसते एसो नयकप्पोऊ पुबगतम्भी समक्खाओ (१२२१) उप्पदपुव्य विसालं तं आदि काउसव्यपुव्येसु पणिओ यनयविमागो एत्यं चोदेति अहसीसो ॥२२१३॥ ||२२१४॥ ||२२१५॥ ।।२२१६॥ ||२२१७॥ ||२२१८॥ २२१९॥ |२२२०॥ ॥२२२१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009767
Book TitleAgam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages164
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 38, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size3 MB
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